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पाटणमा श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमदिरस्थित कागळ उपरना हस्तलिखित (Paper Mss) २००३५ ग्रथोनो अकाराटिकम
[ २५६ ]
(Paper Mis) २००३५ प्रथोनो अकारादिकम
[ २५६]
क्रमाक
पत्र भाषा
पुस्तकनु नाम
कर्ता
क्रमाक
पत्र भाषा कर्ता
पुस्तकनु नाम
w
९८९६ पञ्चक्खाणसज्झाय १९२३५ पञ्चक्वाण सज्झाय ९७०७ पञ्चक्खाणादि ५८२७ पजुसणनमस्कार ६१६२ (३) पजुसणनी थोय ६५०० (३) पजुसणनी थोय ११६५१ (२) पजुसणनी थोय ५९९६ (१५) पजुसणस्तुति १४७६२ पञ्चकफल
६५५१ पञ्चकल्पचूर्णि १४९२१ पञ्चकल्पचूर्णि ७१११ (१२)पञ्चकल्पपर्याय ६५५० पञ्चकल्पबृहद्भाष्य
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३ गु रामचन्द्र २ गु रामचद ६ प्रा २ गु प्रीतिविजय १० गु ज्ञानविमल ८ गु सन्तोष शाह ७ गु २ मानविजय
जिनविजय २ हिन्दी ४२ प्रा
६४ प्रा २४-२६ ४२ प्रा सघदासगणि
क्षमाश्रमण ४ प्रा सङ्घदासगणि
क्षमाश्रमण ४१ प्रा सङ्घदास क्षमाश्रमण ४१ प्रा सङ्घदास क्षमाश्रमण ६५ प्रा सङ्घदास क्षमाश्रमण ९१ प्रा सङ्घदासगणि
क्षमाश्रमण ७३ प्रा सङ्घदासगणि
क्षमाश्रमण ८३ प्रा सघदासगणि
क्षमाश्रमण ७९ प्रा
९६ प्रा १३-१८ हिन्दी
१४००१ पञ्चकल्याणकटीप
२ गु १२७२६ पञ्चकल्याणकपूजा
१० गु रूपविजय १२०८५ पञ्चकल्याणकमहोत्सवस्तवन ३ गु पद्मविजय १४३५५ पञ्चकल्याणकयन्त्र १४३९० पञ्चकल्याणकयन्त्रटीप १ स ९७४१ (३) पञ्चकल्याणकस्तव-स्तुति रजु स ३२६६(८) पञ्चकल्याणकस्तुति
२६ प्रा ११६८३ (२) पञ्चकल्याणकस्तुति
३ प्रास ७७५ (१६) पञ्चकल्याणकस्तोत्र ३३ प्रा जिनवल्लभसूरि ३१०९ पञ्चकल्याणकस्तोत्र बारमासा अपभ्रश
प्रधान
गुजराती पुण्यसागर १२४१५ पञ्चकारणगर्भित वीरजिनस्तवन ४ गु विनयविजयोपाध्याय ९२०१ पञ्चकारणस्तवन-पञ्चबोलस्तवन ६ गु विनयविजयोपाध्याय १२०१९ (२) पञ्चजिननमस्कारस्तुति आदि १२ गु भावरलसूरि ९६६६ (२) पञ्चजिनस्तवन १२०८१ (३) पद्धजिनस्तवन
५-७ गु ३ नन्दसूरि ११२८६ पञ्चजिनस्तव हारबन्ध सावचूरि १ स कुलमण्डनसूरि १२३६५ (७) पञ्चजिनस्तुति
७ स ३१४७ पञ्चज्ञानपूजा
गु रूपविजय ६०१७ पञ्चज्ञानपूजा
रूपविजय ६०१८ पञ्चज्ञानपूजा
गु रूपविजय १३३७६ पञ्चज्ञानपूजा
७ गु रूपविजय १३०५८ पञ्चतन्त्र-पचाख्यान १३१३८ पञ्चतन्त्र-पञ्चाख्यानबालावबोध
१७० गु १३२६६ पञ्चतन्त्र प्रथम तन्त्र
५६ स ११७७६ पञ्चतीर्थस्तवन त्रुटक
३-४ गु लावण्यसमय
७१०९
पञ्चकल्पबृहद्भाष्य
१४८६३ १४९२० १४९२२
३२६
पञ्चकल्पभाष्य पञ्चकल्पभाष्य पञ्चकल्पभाष्य पञ्चकल्पमहाभाष्य
939
३४८
पञ्चकल्पमहाभाष्य
FFIFE
६९२४
पञ्चकल्पमहाभाष्य
३२७ पञ्चकल्पमहाभाष्यचूर्णि ३४९ पञ्चकल्पमहाभाष्यचूर्णि ९१२८ (३) पञ्चकल्याणक