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द्वितीय अध्याय
मामवायु लक्षण
वायुः सामो विवन्धाग्निसाढतन्द्रान्त्रकूजनैः । वेदनाशोथनिस्तोदैः क्रमशोङ्गानि पीडयेत् ।। विचरेद्युगपच्चापि गृह्णाति कुपितो भृशम् ।
स्नेहाथै वृद्धिमाप्नोति सूर्यमेघोटये निशि ।। निराम वायु लक्षण
निरामो विशदो रूक्षो निर्विवन्धोल्पवेदनः ।
विपरीतगुणैः शान्तिं स्निग्धैर्याति विशेषतः ।। सामपित्त लक्षण
दुर्गन्धं हरितं श्यावं पित्तमम्लं स्थिरं गुरु ।
अम्लिकाकण्ठहृद्दाहकरं सामं विनिर्दिशेत् ।। निरामपित्त लक्षण
आतानं पीतमत्युप्णं रसे कटुकमस्थिरम् ।
पक्वं विगन्ध विज्ञेयं रुचिपक्तृवलप्रदम् ।। साम कफ लक्षण
आविलस्तन्तुलः स्त्यानः कण्ठदेशे तु तिष्ठति । सामो बलासो दुर्गन्धः क्षुदुद्गारविघातकृत् ।।
फेनवान् पिण्डितः पाण्डुनिःसारो गन्ध एव च। निराम कफ लक्षण
पक्वः स एव विज्ञेयश्च्छेदवान वक्त्रशुद्धिकृत् । माम निराम इस परिज्ञान का उद्देश्य चिकित्सा मे सामावस्था मे पाचन तथा निरामावस्था मे शमन उपचार करना है।
परस्पर सम्बद्ध होकर तरतमादि भेद से दोप भेद वासठ प्रकार के होते है। इसका विशद वर्णन सुश्रुत के दोप विकल्पाध्याय तथा चरक सूत्र १७ वे अध्याय मे मिलता है।
पूर्वरूप लक्षण ( Definition of prodromata ) पूर्वरूपनिरुक्ति-रोग के जानने का दूसरा साधन पूर्वरूप है। रोग की उत्पत्ति के पूर्व जो भावी व्याधि का लक्षण मिलता है उसे पूर्वरूप कहते है। इसकी निम्नलिखित निरुक्तियाँ शास्त्र में पाई जाती है। १. पूर्व + रूप या प्राक् + रूप अर्थात् यथार्थ रूप के पैदा होने के पूर्व के चिह्न
या वह चिह्न जिससे भावी व्याधि का अनुमान हो सके।