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________________ द्वितीय अध्याय संहिताओ मे हेतुओ के सम्बन्ध मे एक दूसरा वर्गीकरण भी पाया जाता है । इसमें रोगोत्पादन मे तीन कारणो की महत्ता दी जाती है। यह भी एक सामान्य वर्णन है । रोगविशेष के साथ इनका विशिष्ट रूप भी मिलता है । सभी रोगो की उत्पत्ति मे इनकी उपस्थिति अवश्यभावी है। कही एक, क्वचित् दो और कही तीनो मिल कर रोगोत्पादन करते है। इनके नाम १ असात्म्येन्द्रियार्थसयोग २ प्रज्ञापराध तथा ३ परिणाम है। इनको एकैकश. व्याख्या नीचे प्रस्तुत की जा रही है। __ असात्म्येन्द्रियार्थ संयोग-पचकर्मेन्द्रिय तथा उभयात्मक मन का उनके ग्रहण करने योग्य विषयो मे अतियोग, अयोग या मिथ्यायोग का होना रोगोत्पादक होता है। उदाहरण के लिये चक्षुरीन्द्रिय को ले-अति भास्वर वस्तु का अधिक देखना अतियोग, विल्कुल आँखो को बन्द किये रहना और न देखना अयोग और अति सूक्ष्म, भयकर, वीभत्स, अतिदूरस्थ वस्तुओ का देखना मिथ्या योग है। इससे नेत्र के रोग उत्पन्न होते है। वैसे ही कर्मेन्द्रिय पैर को ले-अतिमात्रा मे चलना अति योग, विल्कुल पैरो से न चलना अयोग या विषम, मृदु या कर्कश भूमि पर चलना मिथ्या योग है-इससे पैरो के रोग पैदा हो सकते है। इसी तरह अन्यान्य इन्द्रियो के सम्बन्ध में भी समझ सकते है। फलतः इन्द्रियोका इन्द्रियार्थ के साथ अति योग, अयोग एव मिथ्या योग रोगोत्पत्ति का एक प्रमुख हेतु हुआ । प्रज्ञापराध-बुद्धि, स्मृति तथा धैर्य के नष्ट हो जाने पर मनुष्य जो भी कार्य करता है वह अयथार्थ ज्ञान या मिथ्या ज्ञान से प्रेरित होकर करता हैयह बुद्धि या प्रज्ञा का अपराध कहलाता है। यह प्रज्ञापराध सर्वदा रोग का उत्पादक होता है। मिथ्याहार-विहार के सेवन से रोगोत्पत्ति प्रज्ञापरावजन्य ही होती है, ससार के समस्त सक्रामक रोगो का हेतु भी प्रज्ञापराध ही है। विविध यौन रोगो ( Vinereal Diseases ) मे भी कामुकताजन्य प्रज्ञापराध ही हेतु बनता है। विविध प्रकार के आघातज रोगो ( Accidental Injuries) मे भी प्रज्ञापराध ही हेतु रहता है। यह प्रज्ञापराध चरक के मत से तीन प्रकार का होता है-शारीरिक, वाचिक,तथा मानसिक । धीधृतिस्मृतिविभ्रष्टः कर्म यत् कुरुतेऽशुभम् । प्रज्ञापराधं तं विद्यात्सर्वदोषप्रकोपणम् ॥ त्रिविधं वाड्मनःशारीरम् कर्म प्रज्ञापराध इति व्यवस्येत् । (च० सू० ११)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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