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________________ ७२६ भिपक्रम-सिद्धि पज-सेवन विचार-टोपवि सेवन के टस काल बतलाये गये है। इसमे रोग तथा गी केवल एक टोप का विचार करते हुए दवा का सेवन कराना चाहिये । कफ फी अधिकता में खाली पेट बोपधि देनी चाहिये । अपान वायु के दोप में भोजन के पूर्व, समान वायु के दोप में भोजन के मध्य में, उदान वायु के कोप में भोजन के उपगन्न, व्यान वायु के कुपित होने पर प्रात काल में ओपधि का सेवन कराना चाहिये। प्राण वायु के कुपित होने पर मुहः मुहु या ग्रास में मिला कर या नामान्त में मोपधि दी जानी चाहिये । विप, वमन, हिक्का, श्वास, कास घोर तृपा में वार बार योपवि वरतनी चाहिये। मरोचक में भोजन के साथ मिलार मोपधि देना । कम्प, आक्षेप मोर हिक्का में स्वल्प भोजन के साथ सामुद्ग ( भोजन के पहले और बाद मे) ओपधि दे । कर्व जत्रुगत रोगो में रात में सोते वक्त मोपवि देनी चाहिये । । श्रीपध सेवन काल' १. अनन्न औषध--औषध को खाकर उसके जीर्ण होने पर तब भोजन किया जावे। अथवा बाहार के जीर्ण होने पर भोपधि । अथवा औपध के जीर्ण होने पर माहार लिया जावे । २. अन्न के आदि में--(प्रारभक्त ) भोजन के पहले। पहले ओपधि खाकर पश्चात् भोजन करना। ३. मध्य में--आधा भोजन करके ओपधि चाना, पश्चात् आवा भोजन करना। ४. अंत मे-भोजन के उपरान्त तुरन्त औपधि खाना। . ५. कवलान्तर--ग्रामो के मध्य में (ग्रामो के मध्य में मिलाकर नही ). पाना। ६. ग्रास ग्रास में--प्रत्येक ग्रास में मिलाकर मोपधि का मेवन । ७ मुहुः मुहुः-ओपधि का वार वार चाटने या चूसने या पीने के लिये देना । ८ सान्न--थाहार में बोपधि को मिलाकर खाना । है सामुदग (मम्युट )--पहले औषध फिर भोजन, फिर औपध लेना मामुद्ग है । इनमे आहार दो औपच के बीच में आने से सम्पुटित हो जाता है। १०. निशाकाल-~गत में मोते समय मोपवि का खिलाना। . १ म्यादनन्नमन्नादी मध्येऽन्ते कवलान्तरे । गाने ग्रासे मह सान्नं सामुद्गं निगि चौपधम् ॥ (य ह. मू १३)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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