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भिपर्म-सिद्धि २-महिजन के पत्तो का स्वरस या कपाय खूब साफ छानकर मधु मिलाकर मक्षन कराने या टपकाने से अभिष्यन्द मे लाभ होता है।'
३-फुल्लिका द्रव-परिस त सलिल (Distilledwater) ८ तोला, मिश्री ४ तोला, सेन्धा नमक ४ तोला, शुद्ध स्फटिका ४ तोला । मिश्रित नेत्र की बूंदें।
४-नेत्रविन्दु-गुलावजल ८ तोला, कपूर ६ माशा, अफीम १ तोला, रसोत ८ तोला । मिश्रित । नेत्र मे वूदें डाले ।
चन्द्रोदया वत्ति-गख की नाभि, विभीतक मज्जा, हरीतकी, मनःशिला, पिप्पली, मरिच, बच, कूट । सम भाग मे लेकर बकरी के दूध में पीसकर पतली पत्ति बनाकर रखले । सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद पानी में घिसकर मजन लगाने से तिमिर, मासवृद्धि, काच, पटल, रात्र्यन्ध ( रतौंधी ) एक वर्ष तक का पुष्प ( फूला ) को दूर करती है ।
रतीधी के रोगियो को आहार में वाजरे की रोटी, दूध, नेनुवा का शाक, पका याम या नाम का अमावट प्रचुर मात्रा में खाने को देना चाहिए। साथ में चन्द्रोदया वत्ति का अंजन भी कराना चाहिए ।
त्रिफलाद्य घृत-गोघृत १ सेर, त्रिफला क्वाथ, शतावरी का स्वरस या क्वाथ २-२ सेर, कलकार्य मधुयष्टी चूर्ण २० तोले, मन्द आंच पर पाक करले । इस वृत की १ तोले की मात्रा दिन में दो बार दूध में डालकर प्रात.-सायं पिये। अथवा शहद के साथ मिलाकर खावे । इसका नेत्रो मे अंजन भी किया जा सकता है। तिमिर, दृष्टिमाद्य प्रभृति बहुविध नेत्ररोगो में इसका सेवन माश्चर्यजनक लाभ दिखलाता है।
सप्तामृत लोह-त्रिफला चूर्ण, मधुयष्टी चूर्ण तथा लौह-भस्म सम भाग मे लेकर बना ले । माना १-२ मागा। अनुपान घृत और मधु । विविध नेत्र रोगी में इसका सेवन लाभप्रद है।
त्रिफला चूर्ण-नेत्र में बड़ा प्रशसित है । इसका घृत एव मधु के अनुपान से सेवन अथवा उनका काढा या गीतकपाय बनाकर नेत्रो का नित्य प्रक्षालन बहुविध नेत्र रोगो में लाभप्रद रहता है ।
१. लोलिम्बराजफविना वनितावतंसे गिनोरमुष्य कथितस्तु किमूपयोग । एतस्य पल्लवरसात् समघो. किमन्यद् दृग्व्याधिमात्रहरणे महिलाग्नगण्ये ।
(वै. जी )