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पंचम खण्ड : परिशिष्टाध्याय
७१५ अलस (अंगुलियों का सड़ना-पंचगुण तैल या मरिचादि तैल का लगाना।
मुखपाक ( Stomatis )१ शुद्ध टकण का मधु से लेप । २ दुग्धपाषाण (सग जराहत) मधु से लेप करना। ३ खदिरादि वटी का मुख मे धारण करना। ४ चमेली पत्र या सहिजन के छाल का काढा बनाकर कुल्लो करना । ५. नित्य मृदु रेचन (यष्ट्यादि चूर्ण६ मा.) देना । बार-बार होने वाले मुख पाक मे अकुरित चने का सेवन एक मास तक ।
६. जात्यादि कपाय-चमेली की पत्ती, अनार की पत्ती, बब्बूल की छाल, वेर को जड । प्रत्येक ६-६ माशे। जौकुट करके ६४ तोले जल मे पकावे । आधा शेष रहने पर उममे शुद्ध फिटकिरी १ मागा और शुद्ध टकण १ माशा मिलाकर रख ले। दिन मे कई वार कुल्ली करे। इससे मुख और गले के पकने मे अच्छा लाभ होता है।
तुण्डिकेरी ( Tonsils enlarged )-१ कफकेतु ( कासरोगाधिकार ) का पानी में पीस कर गले में बाहर से लेप। २ अध.पुष्पी ( अधा हुली) की पत्ती, शहतूत को पत्ती, रहर की पत्ती, मरिच ७ दाने मिलाकर एकत्र महीन पीस कर आग पर गर्म करके गले के बाहर से बाँधे। यथावश्यक एक सप्ताह से लेकर एक मास तक प्रयोग करने से पर्याप्त लाभ होता है। ३. गृह धूम ( रसोई घर का धुवा), सेंधानमक और मधु एक मे मिलाकर गले के अदर लेप करे । ४ कल्याणावलेह (वातरोगाधिकार) ३ माशा मे शु टकण ४ रत्तो, १ माशा मधु मे मिलाकर दिन में दो बार चटावे । ५. पीत सैरेयक ( पीली कटसरैया का क्वाथ बनाकर उससे कई बार गार्गल भी रोगी को कराना चाहिये ।
चलदन्त ( दाँतो के हिलने )--मे मौलसिरी ( वकुल ) की छाल का मजन उत्तम रहता है। किसी मीठे तेल का अथवा वातरोगाधिकार मे पठित तैलो का, पंचगुण तैल का अथवा इरिमेदादि तैल का मुह मे कुल्ला करना उत्तम
रहता है।'
दॉतों मे पानी का लगना-अजवायन, हल्दी और सेधानमक का ___ महीन चूर्ण बनाकर सरसो के तेल में मिलाकर मजन करना उत्तम होता है।
१ एषः सुगन्धमु फुलो बकुलो विभाति वृक्षाग्रणी प्रियतमे मदनैकवन्धु । यस्य त्वचा च चिरचर्वितया नितान्तं दन्ता भवन्ति चपला अपि वज्रतुल्या ॥
(वै जी)