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पंचम खण्ड : परिशिष्टाध्याय
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मसूरिकामे दानो को निकालना हो तो प्रथमोक्त का और बैठाना हो तो द्वितीयोक्त कषाय का प्रयोग करना चाहिये ।
उपदंश फिरंग
अंकरी - मूखी पत्ती १ तोला, गीली पत्ती २॥ तोला, काली मिर्च, एक छटाक पानी मे पीस कर, चीनी के शर्बत के साथ सेवन करे । सुबह-शाम दिन मे दो बार, कुल एक सप्ताह तक सेवन करावे |
पाददारी ( बेवाई Rhagades ) – राल और सेधानमक दोनो को मम भाग मे लेकर पीस कर शहद और घृत मिलावे । फिर सरसो का तेल मिला कर मल्हम जैसे बना ले । दारी वाले स्थान पर लगावे ।
युवानपिडिका मुखदूपिका- १ मसूर की दाल को घी में भून कर दूध में पीसकर लगाने से एक सप्ताह मे ही पर्याप्त लाभ होता है । २ शख भस्म का अवधूलन (मुहासे के ऊपर 'पाउडर' जैसे लगाना) उत्तम कार्य करता है । नाथ में पेट को ठीक रखने के लिये आरोग्यवर्धिनी १-२ गोली सुबह-शाम दिन मे दो वार देना चाहिये ।
व्यंग ( झाँई ) – १ लोध, सोठ, देवदारु, गेरू, मसूर की दाल को पीसकर लेप करना । अथवा २ जायफल को दूध या जल मे पीसकर लेप करना । न सीमम की पत्ती का लेप । ४ हल्दी के चूर्ण को मदार के दूध या वट के दूध के साथ लगाना । ५ अमलताश की पत्ती, आमाहल्दी को दही मे पीसकर लेप करे | यह योग व्यग तथा युवानपिडिका दोनो मे लाभप्रद रहता है ।
अपिका ( रूसी ) - कूठ को तवे पर भूनकर चूर्ण बनाकर तिल तेल मे मिलाकर लेप करने से उत्तम लाभ होता है । सिर एव केशो की सफाई का भी ध्यान रखना चाहिये ।
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इन्द्रलुप्त—१ उस्तरे से उथले चीरे लगा कर या हल्के प्रच्छान लगाकर गुजा के बीजों का लेप करना । २ हाथो के दांत की अतधूम भस्म बनाकर उसमे उतनी ही श्रेष्ठ रसोत मिलाकर जल के साथ पीसकर लेप लगाने से नष्ट हुए केश पुन: उत्पन्न हो जाते है ।" इस योग को यहाँ तक प्रशसा है कि हाथ के तलवे मे भी लेप करने से बाल आ सकते है । ३ इन्द्रलुप्त-नाशन तैल का सिर पर मालिश करना भी उत्तम है । चक्रदत्त का स्नुह्याद्य तैल या इन्द्रलुप्तघ्न तैल उत्तम रहता है । निर्माणविधि इस प्रकार है । क्ल्कार्थ - थूहर का दूध, आक का
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१ हस्तिदन्तमसी कृत्वा मुख्य चैव रसाञ्जनम् । लोमान्यतेन जायन्ते
लेपात्पाणितलेष्वपि ॥