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________________ परिशिष्टाध्याय पूर्व के अध्यायो मे प्राय. कायचिकित्सा से सम्बन्धित रोगो का आख्यान हो चुका है। इस अध्याय मे कुछ अवशिष्ट रोगो का, शल्य-काय उभयविध रोगो ( Medicosurgical Diseases ) का तथा कुछ विप्रकीर्ण विषयो का मक्षिप्त विचार प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें केवल दृष्टफल योगो का ही वर्णन है। वृद्धिरोग ( Inguino-Scrotalswelling ) प्रतिषेध वृपण वृद्धि या अण्डकोप शोथ (Orchitis)-चिकित्साक्रमसर्व प्रकार के वृद्धि रोगो मे पूर्ण विश्राम, रेचन, वातानुलोमक तथा मूत्रप्रवर्तक औपधियो का प्रयोग करना चाहिए। त्रिफला चूर्ण दो तोला, जल १६ तोला, अवशिष्ट क्वाथ ४ तोला मे उतना ही गोमूत्र मिलाकर प्रात काल में देने से नवीन वृद्धि में सद्यः लाभ होता है। साथ मे गुग्गुलु वटी २-२, सुबह-शाम गर्म जल से तथा रात में सोते समय पट्सकार चूर्ण या हरीतकी चूर्ण ६ माशा या यष्ट्यादि चूर्ण ६ माशा रात को सोते समय गर्म गल से देना चाहिए। एरण्ड तैल का प्रयोग भी उत्तम रहता है ।' घीकुआर को फाडकर उसपर आमाहल्दी का चूर्ण छिडक कर वृषण पर बाँधना और लँगोट लगाना भी उत्तम रहता है। गलगएड (Goitre)-स्थानिक लेप, वमन, रेचन, शिरोविरेचन तथा रक्तविस्रावण लाभप्रद रहता है। रोगी को भोजन मे जौ, कोदो, मूग, परवल, करेला, अदरक, लहसुन एव प्याज प्रचुर मात्रा मे देना चाहिए । लेपअदरक, सहिजन, सोठ, काला जीरा, प्याज, मसूर की दाल और बकरी की मीगी को पीसकर मन्दोष्ण लेप । केवल जलकुम्भी को पीस कर उसका लेप गले पर चढ़ाना तथा उसका रस निकाल १-२ तोला प्रतिदिन रोगी को पिलाना उत्तम रेचन मूत्रकृद् यच्च यद्वायोरनुलोमनम् । तत्सवं वृद्धिरोगेपु भेपज परियो गयेत् ।। त्रिफलाक्वाथगोमूत्रं पिवेत् प्रातरतन्द्रित । कफवातोद्भव हन्ति श्वयथु वृषणोत्थितम् ॥ ( भै र )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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