________________
७२२
'भिपक्षम-सिद्धि पंचारविन्द रसायन-विस, कमलनाल, कमल के पत्ते, कमल के केसर, कमल के वीज इनके कल्क के साथ सुवर्ण का टुकड़ा, दूध और घी को सिद्ध करें। यह विख्यात पंचारविन्द नामक वृत है। जिसका पीरुप, बल, मेधा, प्रतिभा नष्ट हो गई है उसको इसका सेवन करना चाहिये । पुन: मेवा एव आयु की प्राप्ति होती है।
. अन्य रस के योग-कूपोपपत्र रसायन ( मकरध्वज, चंद्रोदय प्रभृति ), तथा रस योग ( महालक्ष्मीविलास, योगेन्द्ररस, त्रैलोक्यचिन्तामणि रस प्रभृति) भी रसायन रूप मे व्यवहृत होते है । मात्रा १-२ रत्ती । अनुपान दूध, मलाई, घृत, नवनीत, मिश्री यथालभ्य ।
रसायन पथ्य-गीतल जल, दूध; मधु और घृत ये अलग, दो-दो मिलाकर या तीन-तीन या चारो को मिलाकर प्रातःकाल मे पीने से वयःस्थापक (आयु को स्थिर करने वाले) होते हैं। इनके पन्द्रह योग होते है। इनका यथावश्यक, असमान मात्रा में सेवन करना चाहिये ।१ जी को कटकर बनाये यवाग या रोटी का पिप्पली चूर्ण २-४ रत्ती और ६ मागे मधु के साथ मिलाकर सेवन करना मेध्य एवं लायुष्य होता है। इसके प्रयोग से मेघा वृद्धि होकर मुखपूर्वक शास्त्राभ्यास हो जाता है । २ रात के वीच जाने पर प्रात काल मे शीतल जल का नस्य या नाक मे पानी का पीना रसायन एव दृष्टिजनन होता है। प्रात. काल मूर्योदय के पूर्व उठकर कुरले करके शीतल जल का पीना मनुष्य को शतायु करता है । मात्रा ६४ तोला।
मजतल रसायन-एरण्ड तैल, निम्बतैल,ज्योतिष्मती तैल, विभीतक मज्जा तेल, पलाश वोज मज्जा तेल । इन तैलो का सेवन रसायन गुण वाला होता है। इनका मुत्र ने तय नस्य द्वारा प्रयोग करना चाहिये । इससे शरीर नोरोग होता है। मकाल पलित (केमो का पकना) दूर होता है । इनके प्रयोग काल मे व्यक्ति को
१. नीतोदक पय क्षौद्रं घृतमकैकग द्विश
त्रिश. सगरतमथवा प्राकपीत स्थापयेद्वय ।। (यो र ) २ चावफास्तावकान् सादेत् अभिभूय यवास्तथा ।
पिप्पलीमधुनयुक्तान् शिक्षाचरणवद् भवेत् ।। (सु. चि. २८ ) ३ व्यंगवलीपन्तिघ्नं पीनमवस्वर्यवासकामहरम् ।
रजनीक्षयेऽम्युनस्यं रसायनं दृष्टिजननञ्च ।। (भै. र.) ४ सम्मम. प्रनृतीनटी रवावनुदिते पिवन् ।
वातपित्तगदान् हत्वा जोवेर्पशतं नर ॥ (भै. र )