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भिषसम-सिद्धि फलतः ये सर्वव्याधिहरण मे समर्थ तथा रसायन गुणो से युक्त होते है । आमलकी एव हरीतकी को प्रधानता वाले बहुविध योग सहिताओ मे रसायनाधिकार में पाये जाते है । जैसे-वाम रसायन, च्यवनप्राश, आमलक रसायन, आमलकी घृत, आमलकावलेह, हरीतको योग आदि। इनमे कुछ योगो का ऊपर मे उल्लेख हो चुका है। लहसुन भी एक इसी प्रकार का रसायन द्रव्य है जिसके बहुविध योगो का वर्णन काश्यप सहिता के रसोन कल्प मे पाया जाता है । यहाँ पर उसके रसायन रूप में सेवन विधि का अष्टाङ्गहृदय के अनुसार संक्षिप्त वर्णन दिया जा रहा है।
लहसुन वीर्य मे उष्ण होता है। इसका रसायन रूप मे सेवन हेमन्त ऋतु या वसन्त मे करना चाहिये । वात रोग से पीडित व्यक्ति वर्षा ऋतु मे ले सकता है। यदि वातार्त व्यक्ति हो तो ग्रीष्म ऋतु में भी इसका सेवन ऋतु दोष को वचाते हुए तदनुकूल व्यवस्था करते हुए कर सकता है। प्रतिदिन लहसुन के कल्क की कुल मात्रा २ से ४ तोले । स्वरस की ४ से ८ तोले । इसमे उतनी ही मात्रा में सुरा या मद्य मिलाकर भोजन के साथ खाने को देना चाहिये । जी मद्य न पीता हो उसे काजी या फलो के रस, विजौरे या कागजी के रस मे मिला कर देना चाहिये । लहसुन के अनुपान रूप में तक्र, तेल, दूध, घी, मांसरस, वसा, मज्जा का भी अनुपान बतलाया गया है। काल, रोग, वल, सात्म्य, सत्त्व आदि का विचार करते हुए प्रतिदिन की मात्रा तथा अनुपान का निर्धारण करना चाहिये। __ इस प्रकार पित्त-रक्त रहित सम्पूर्ण आवरणो से रहित वायु के लिये या गुद्ध वायु के लिये लहसुन से उत्तम और कोई द्रव्य नहीं है। मास, मद्य, अम्ल से जिनको द्रुप है, जल, गढ और दध जिनको प्रिय है अथवा अजीर्ण से जो पाडित हैं, उनमें लहसुन का सेवन हितकर नही रहता है। लहसुन के प्रयोग काल में पित्त की अधिकता को कम करने के लिये व्यक्ति में प्रतिदिन मृदु रेचन की भी व्यवस्था करनी चाहिये । इस प्रकार विचारपूर्वक लहसुन के वरते जाने से रमायन का गुण प्राप्त होता है।
विडङ्ग रसायन-विडद्भावलेह-विडङ्ग चूर्ण २५६ तोले, पिप्पली चूर्ण । २५६ तोले, मिश्री २५६ तोले, वृत १२८ तोले, तिल तेल १२८ तोले, मधु १२८ तोले । छवो द्रव्यो को एक में मिश्रित करके घृत के भाण्ड में रखकर वर्षा महतु में रास की ढेर में गाड कर रख दे । पुन. वर्षा ऋतु के अनन्तर निकालकर मात्रा से सेवन करें। इसके सेवन से वार्धक्य से रहित होकर मनुष्य शत वर्ष तक जीवित रहता है ।