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________________ ६८६ भिषम-सिद्धि द्वारा उनका निधन प्राप्त होता है। केशो का श्वेत होना केशो का वाद्धक्य है, दृष्टि की शक्ति का ह्रास होना उनमें काच या मोतियाविन्दु का बनना नेत्रो का वार्द्धक्य, त्वचा में झुरियो का पडना, त्वचा को जरठता, पेगियो का गैथिल्य और उनको नमनशीलता का कम होना मासपेशी का वाक्य, शरीरगत रक्तवाहिनियो की नमनशीलता का कम होकर दृढता का धमनी जरठता (Arternosclerosis ) प्रभृत्ति परिवर्तन वाक्य के चिह्न के रूप में पाए जाते है । संक्षेप में युवावस्था में जो कार्य-क्षमता रहती है उसका क्रमिक ह्रास वृद्धावस्या में कुछ परिवर्तनो के अनन्तर पाये जाते है । ये सभी घटनाएँ काल परिणाम से होती है और स्वाभाविक है एव मर्त्य लोक में अवश्यभावि है । देव योनि मे ममय से होनेवाले परिवर्तन नही पाये जाते। मनुष्य एवं देव, मर्त्य तथा स्वर्ग लोक में यही महान अन्तर है। स्वर्ग, नरक की कल्पना का भी सम्भवत. यही आधार है । फलतः देव लोक काल परिणाम जन्य रोग, जरावस्था और मृत्यु इन तीन अवस्थाओ से परे होते है अर्थात् इन तीनो स्वाभाविक अवस्थाओ पर विजय प्राप्त किए हुए है। . __ मनुष्य अनेक युगो से इस देवत्व की प्राप्ति के लिए प्रयास करता आ रहा है । फलत मानव का जरा, रोग और मृत्यु के जीतने का या इनके ऊपर विजय प्राप्त करने का प्रयास अनादि काल से चला आ रहा है और गाश्वत है। आधुनिक युग में वैज्ञानिक भी रोग पर विजय प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील है। उसी प्रयास के फलस्वरूप रोग निवारण ( Prfilaxis) के बड़े-बड़े साधनो का आविष्कार किया है और करते जा रहे है । विश्व स्वास्थ संघ (W. H. O ) का मंगठन भी इसी आधार पर हुआ है कि किस प्रकार हम मनुष्य को निरोग रख सकें। जरावस्था पर भी विजय प्राप्त करने का दुन्दुभीघोप कर दिया है। युवक को वृद्धावस्था में परिणत करनेवाले कारण भूत विभिन्न प्रकार के नि स्यन्दो ( Hormones) के परिवर्तनो, जीवतिक्तियो को कमी पुन. उनको पूति द्वारा जरावस्या को रोकने का प्रयत्न (Gernatics) समुदाय की चिकित्मा व्यवस्था द्वारा चल रहा है। यद्यपि इन योगो में सफलता पूरी नहीं मिल पाई है, परन्तु प्रयत्न चल रहे है-सम्भव है भविष्य भी उज्ज्वल रहे । मृत्यु पर भी आधिपत्य प्राप्त करने के लिए माज वैज्ञानिक मनीपी अग्रसर है, परन्तु मफरता अभी भविष्य के अन्तराल में निहित है । आयुर्वेद में एक स्वतन अंग हो दिव्य रमायनो का पाया जाता है। अन्य अग क्वचित् अपूर्ण भी मिलते है, परन्तु यह अंग स्वतः पूर्ण एवं अनुपम है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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