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चतुर्थ खण्ड : तैंतालीसवाँ अध्याय
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विचारा कि नगर या ग्राम-वास से उनकी यह दुरवस्था हुई है । फलत: उन्होने निश्चय किया कि हम लोग इस दुरवस्था से बचने के लिए ग्राम्य दोष से रहित कल्याणकारक, पुण्य एवं उदार स्थान, पापियो के लिए अगम्य, गंगा के उत्पत्ति स्थान, देव- गन्धर्व-यक्ष- किन्नरो की सञ्चार भूमि, अनेक रत्नो की खान, अचिन्त्य एवं अद्भुत प्रभाव वाले ब्रह्मपियो- सिद्ध पुरुषो के चरणो से सेवित, दिव्य तीर्थ एवं दिव्य औषधियो के उत्पत्ति स्थान, अतिशरण्य तथा देवराज इन्द्र से सुरक्षित हिमालय पर्वत पर चले और उन्होंने ऐसा ही किया ।
हिमालय में पहुँचने पर देवताओ के गुरु इन्द्र ने उन लोगो का स्वागत एवं सत्कार किया और कहा कि आप लोग ज्ञान एवं तपस्या मे बढे हुए ब्रह्मज्ञानी पुरुष है | परन्तु ग्राम्यवास के कारण आप लोगो का शरीर कष्टयुक्त हो रहा है, स्वर एव वर्ण मे अन्तर आ गया है तथा असुख का अनुभव कर रहे है | ग्राम का वास वास्तव मे अप्रशस्त है, इस वास से बहुधा असुख उत्पन्न हो रहे है । आप पुण्यवानो का ग्रामवासी जनता के कल्याण के लिए यहाँ आगमन हुआ अपने शरीर के दोषो के परिमार्जन के साथ-साथ ग्राम वासी जनता का भी आप कल्याण करना चाहते है एतदर्थ आप लोगो का यहाँ नागमन हुआ है । यह काल भी आयुर्वेद के उपदेश के लिए उपयुक्त है । अस्तु, मै आप लोगो को आयुर्वेद का उपदेश करूंगा, जिसके द्वारा आप अपना तथा ग्रामवासी प्रजा दोनो का कल्याण कर सकें । फिर इन्द्र ने इन महर्षियो को आयुर्वेद का उपदेश किया ।
इन्द्र ने कहा कि यह आयुर्वेद का उपदेश अपने तथा प्रजा के कल्याण के लिए है । इस आयुर्वेद का उपदेश अश्विनी कुमारो ने मुझे किया था, अश्विनी कुमारो को यह ज्ञान प्रजापति से प्राप्त हुया था और प्रजापति को साक्षात् जगत् के स्रष्टा ब्रह्मा ने उपदेश किया था । इस उपदेश का प्रधान उद्देश्य ग्रामवास करते हुए प्रजा का कल्याण ही है । लोक की प्रजा रोग, वृद्धावस्था ( छोटो उमर मे ही वर्द्धय का अनुभव ) दुख एव दुख की परम्परा से पीडित हैं, वे अल्पायु हो गये है, उनमें तप-दम-नियम एव अध्ययन की कमी होती जा रही ह । अस्तु, मै उन लोगो को तप-दम-नियम - अध्ययन में अधिक समर्थ करने के लिए, आयु को बढाने के लिए, जरावस्था एव रोग को दूर करने के लिए, स्वस्थ प्रजा को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए, आप लोगो के समक्ष ब्रह्म, आर्ष, अक्षय, परम कल्याणकारक, उदार एव अमृत स्वरूप आयुर्वेदीय रसायनो का उपदेश कर रहा हूँ । आप सभी एकाग्रचित्त होकर सुनें और सुनकर प्रजा के कल्याण के लिए इसे प्रकाशित करें और प्रचार करे । इन्द्र के इस वचन को सुनकर ऋपियो ने इन्द्र की स्तुति की और बडे प्रसन्न हुए ।