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चतुर्थ खण्ड : चोतीसवाँ अध्याय
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कुशावलेह-कुशा-कास-खस-इक्षु-एव रामशर की जड प्रत्येक का १०१० पल लेकर २ द्रोण जल मे क्वथित कर अष्टमाश शेप रहने पर छान ले । फिर इसको कडाही मे लेकर अग्नि पर चढाकर १ प्रस्थ खांड डालकर दो तार की नाशनी बनावे, जब वह किंचित् गाढा होने लगे तो उसमे निम्नलिखित द्रव्यो फा चूर्ण डाले-मयष्टि, सीरा-कुष्माण्ड एवं ककडी के वोज-गिरो, वशलोचन, आंवला, तेजपात, दालचीनी, इलायचो नागकेशर, वरुण की छाल, गिलोय का सत्त्व, प्रियग प्रत्येक एक तोला । फिर अच्छी तरह से आलोडित करके मिलावे । और पाक बना ले । मात्रा १ तोला । दूध के साथ प्रातः-सायम् ले । सभी प्रकार के प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात मे लाभप्रद ।
गोक्षुरादि गुग्गुलु ( वातरक्ताधिकार)-मधुमहेज वातिक वेदना एव सधिगोथ एवं पूयमेहज संधिवात मे लाभप्रद ।।
चंद्रकला वटी-छोटी इलायची के बीज, कपूर, शिलाजीत, आँवला, जायफल, केशर, सेमल के मूल, रस सिन्दूर, वग भस्म और अभ्रक भस्म समभाग में ले । प्रथम रम सिन्दूर को खरल मे महीन पीसे । पीछे उसमे शिलाजीत, भस्मो तथा अन्य द्रन्यो के कपडछान चूर्ण को मिलावे । फिर हरी गिलोय और सेमल के मूल के रस से तीन-तीन दिनो तक मर्दन करके ३-३ रत्ती की गोलियां बना ले। छाया में सुना कर शीशी में भर ले । मात्रा २ गोली सुबह-शाम मधु से चाट कर ऊपर से गाय का दूध ले। सर्व प्रमेहो मे लाभप्रद । विशेपत शक्रमेह एवं स्वप्नदोप में हितकर है।
चंद्रप्रभा वटी-कपूर, वच, मोथा, चिरायता, देवदारु, हल्दी, कडवी अतीस, दारुहल्दी, पीपरामूल, चित्रक की छाल, निशोथ, दन्ती की जड, तेजपात, दालचीनी, इलायची, वंशलोचन, गिलोय, प्रत्येक १-१ तोला, धनिया. हर वहेरा, आंवला, चव्य, वायविडङ्ग, गजपीपल, स्वर्णमाक्षिक भस्म, सोठ, मरिच, पीपल ( छोटी), सजिक्षार, यवक्षार, सैवव, सोचल तथा विडलवण प्रत्येक का वर्ग-४ माशे, लौह भस्म २ तोला, चीनी ४ तोला, शुद्ध शिलाजीत तथा शुद्ध गुग्गुलु ८-८ तोले।
प्रथम गुग्गुलु को साफ करके लोहे के इमामदस्ते मे कूटे जब गुग्गुलु नर्म हो जाय तो उसमे अन्य भस्म तथा द्रव्यो के कपडछन चूर्ण मिलावे । जब गोली बनने लायक हो जावे तो उसमे त्रिफला क्वाथ की भावना देकर ५-५ रत्ती की गोलियां बनाकर शीशी मे भर ले । मात्रा १-२ गोली। अनुपान गाय के दूध से ।