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इन दोनों में अभेद संबंध है। यह दुशा वेट का विशेषार्थ, परन्न सामान्यार्थ में वेद का विचार करें, तो वेद शब्द विद धान से बना है। विद धान का प्रयोग निम्नलिखित अयों में होता है :
मत्ताया विद्यते, नाने वत्ति. विन्त विचारणे । विन्दते विन्दति प्रामौ श्वन-लुक-नाम-शप्पिद क्रमात् ।।
(लि. कीमुदी) इस हरिकारिका के आधार पर आयुर्वेद पद मे वाच्य समय गट अर्थ होगा ऐसा तंत्र जिसमें आयु हो, या आयु का ज्ञान कराया जाने, या आय का विचार हो, या जिसमे आयु की प्राप्ति हो सके उसे आयुट करेगे। परन्तु शास्त्रकार ने उसे एक ही विपार्य में सोमायद कर ग्या है अर्थात जिस तंत्र में आयु का ज्ञान कराया जाय ।
आयु का स्वरूप-वंद शब्दजी राजा के माधान के अनन्नर दृमरी शका आयु गढ के सम्बन्ध में न्बत' उत्पन्न होनी है। आयु क्या वन्तु है आयु शब्द की निरुक्ति शान्त्रकारों ने पर्याय कथनों से की है :
शरीरन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् ।
नित्यगश्चानुवन्धश्च पर्यायैरायुच्यते ।। (च० मू: १) १. गरीरेन्द्रियसत्त्वात्मन्मयोग-शरीर-इन्द्रिय-सत्त्व और आत्मा की सयुकावस्था को आयु कहते है। २. धारि-रम-रक्त सवहनादि क्रियाओं के द्वारा शरीर को धारण करनेवाली और शरीर को विशीर्ण न होने देने वाली शक्ति को आयु कहते है। ३. जीविन-वलन कर्म के द्वारा प्राण को धारण करते हुए गरीर को बनाए रखता है । इसीलिए जीवन या जीवित पर्याय भी आयु का कहा गया है। ४. नित्य-गति ( Movement ) एक भायु का प्रमुख लक्षण है । एतदर्थ आयु के पर्याय में नित्यग गब्द का प्रयोग किया गया है। प्रतिक्षण उममें गति होती है, एक लनण के लिए भी जो नही रुकता अर्थात् सदैव गतिगील है । जीव में गति का होना या क्रिया का होना स्वाभाविक है
न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते यवश. कर्म सर्वः प्रकृतिजैगुणैः ।। (गीता अ० ३) ५ चेतनानुवृत्ति-चेतना का सतत बना रहना आयु है। गर्भावस्था से मरणपर्यन्त यह चेतना या संवेदन का गुण बना रहता है। चेतन एवं अचेतन, सजीव और निर्जीव, ऐन्द्रिय या निरीन्द्रिय तथा जीवित और मृत का भेदक यह एक प्रमुख लक्षण है। इसीलिए आयु के पर्याय में चेतनानुवृत्ति का पर्याय दिया गया है। ६. जन्मानुबंध-इसके दो अर्थ हैं। एक तो लौकिक दूसरा