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चतुर्थ खण्ड : बत्तीसवाँ अध्याय ५४५ __ मृगशृङ्ग भस्म ४ तोला, जद्वार (निर्विपो ) का चूर्ण २ तोला, कस्तुरी १
तोला, अम्बर २ तोला ले। अच्छे न घिसने वाले खरल मे प्रथम सब पिष्टियो को डालकर उसमे सोने और चादी के वरको को एक-एक कर मिलावे और मर्दन फरता रहे । जव सव वरक मिल जावे तब उसमे अर्क गुलाब थोडा डाल कर १४ दिनो तक मर्दन करे । १५ वें दिन उसमे कस्तूरी और अम्बर डाल कर एक दिन तक गुलाव के अर्क मे मर्दन करके १-१ रत्ती की गोलियां बनाकर छाया मे सुखाकर शीशी मे भर लेवे ।
मात्रा एवं अनुपान-१-१ गोली सुबह-शाम खमीरोगाव जवान से या मधु से सेवन करे।
उपयोग-यह हृदय को वल देने वाला उत्तम योग है । हृद्रव ( दिल का धड़कना), थोडा परिश्रम से दम भरना प्रभृति हृदय को दुर्बलता से पैदा होने वाले लक्षणो में अच्छा कार्य करता है ।
(सिद्धयोग संग्रह से) उपसहार-व्यवस्थापन--
(१) अर्जुन क्षोर प्रात । (२) रस-सिन्दूर या स्वर्ण सिन्दूर या चन्द्रोदय या मकरध्वज
प्रवाल पिष्टि चिन्तामणि विश्वेश्वर, हृदयार्णव रस या प्रभाकर वटी
मृगशृङ्ग भस्म ४ र० इन तीन मे से । व्योमाश्म पिष्टि १र० कोई, एक दो र रक्ताश्म पिष्टि । या तीनो । हरिताश्म पिष्टि १र०
मिश्र २ मात्रा प्रातः-सायं अर्जुन चूर्ण + घी + चीनी से या
। दिन में दो बार गेहूँ के काडे से । (३) हिग्वादि वटी (उदावत) भोजन के बाद १ गोली खिलाकर ऊपर से (४ ) अर्जुनारिष्ट या धान्यरिष्ट या अश्वगधारिष्ट बडे चम्मच से २ चम्मच
वरावर पानी मिलाकर । (५) चन्द्रप्रभा वटी ( अर्शोधिकार )
। १-२ गोली रात मे सोते वक्त दूध से । (६ ) जब कभी बेचैनी, घबराहट, तनाव आदि प्रतीत हो तो अर्क वेद
मुश्क ( लताकस्तुरी), अर्क अजवायन, अर्क सौफ, अर्क पुदीना और
गुलाब जल मिलाकर पीने के लिये देना चाहिये । ३५ भि० सि०
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