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________________ चतुर्थं खण्ड : बत्तीसवाँ अध्याय ५४३' रहता है । इस हलवे मे पानी की जगह बकरी का दूध और गुड की जगह मिश्री का चूर्ण या चीनी भी मिला सकते है । शीतल होने पर मधु भी मिलाया जा सकता है। ७ नागवला-का चूर्ण ३ माशे से ६ माशे दूध के साथ सेवन । ८ हिंगूनगंधादि वटी-( उदावत)-कई बार इस गोली का सेवन-चूसना या 'जो के क्वाथ के साथ सेवन हृच्छूल तथा बेचैनी को शान्त करता है। हपाठाद्य चूर्ण-पाठा, वच, यवाखार, हरड, अम्लवेत, यवासा, चित्रक की छाल, सोठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, हरड, बहेरा, आंवला, कचूर, पोहकरमूल, वृक्षाम्ल, दाडिम की छाल, अनारदाना, विजौरा नीबू के जड की छाल । सम मात्रा मे कूटकर चूर्ण बना ले । मात्रा २-४ माशे । मद्य या जल के साथ । १० मृगशृंग भस्म-बारहसोगे के सीग को ( अच्छे पुष्ट भरे ) ले । उसको काटकर छोटे-छोटे टुकडे कर ले । गजपुट में फूक दे । स्वागशीतल होनेपर दूसरे दिन निकाल कर उसको चूर्ण करके अर्कक्षीर से भावित करे । टिकिया बना ले । शराव-सम्पुट में बदकर पुन उपले की अग्नि में एक पुट दे । शहद और गाय के घी के साथ २ रत्तो से १ माशा तक दे। हृच्छ्रल, पार्श्वशूल, विविध प्रकार के हृद्रोग तथा कफ कास में प्रयोग करे। बृहद् धमनी-विस्कार ( Fusiform Dilatation of Arota) मे इसका उत्तम लाभ एक बार देखने को मिला था। अर्कक्षीर से भस्मीकृत शृंग का ही प्रयोग हृद्रोग मे लाभप्रद रहता है ।२ ११ नागार्जुनान रस (श्वासरोगाधिकार )-परम बल्य, वृष्य एवं हृद्य रसायन है । हृद्रोग मे उत्तम कार्य करता है । १२ हृदयार्णव रस-शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक ताम्र भस्म प्रत्येक एक तोला। त्रिफला कपाय की एक भावना, काकमाची ( मकोय ) के स्वरस या कपाय की एक भावना दे पश्चात् २-२ रत्ती की गोलियां बना ले। अर्जुन चूर्ण आँवले के चूर्ण-घृत और मिश्री के साथ दे। शोथ युक्त पुराने हृद्रोग मे उत्तम लाभ करता है। १२ प्रभाकर वटी-स्वर्णमाक्षिक भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, १. गोधूमककुभचूर्ण छागपयोगव्यसपिषा पक्वम् । मधुशर्करासमेतं हृद्रोगं बहुसमुद्धतं पुसाम् ॥ (भै र ) २ पुटदग्धमश्मपिष्टं हरिणविपाण च सर्पिपा पिवत । हृत्पृष्ठशूलमुपशममुपयात्यचिरेण बहु कप्टम् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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