________________
चतुर्थ खण्ड : इकतीसवाँ अध्याय
५३७
।
काङ्कायन गुटिका - कचूर, पोहकरमूल, दन्ती की जड, चित्रक की जड, अरहर की जड, सोठ, वच, निशोध की जड प्रत्येक ४ तोला, शुद्धहोग १२ तोला, यवक्षार, अम्लवेत ८-८ तोला, अजवायन, धनिया, जीरा, काली मिर्च, काला जीरा, अजमोद प्रत्येक १-१ कर्ष । सब द्रव्यो का महीन कपडछन चूर्ण बनाकर विजौरे नीबू के रस के साथ एक सप्ताह तक भावना दे पश्चात् ४-४ रत्ती की गोली बना ले | मात्रा १-२ गोली दिन मे तीन बार यह गुटिका अर्श, हृद्रोग, उदावर्त्त तथा गुल्म रोग मे लाभप्रद होती है । अनुपान भेद से विविध प्रकार के गुल्मो मे इसका उपयोग प्रशस्त है । जैसे, श्लेष्मगुल्म मे गोमूत्र के अनुपान से । पित्तज गुल्म मे दूध के अनुपान से । मद्य तथा अम्ल से वातिक गुल्म में । त्रिफला कपाय, गोमूत्र के साथ त्रिदोषज गुल्म मे । ऊँटनी के दूध के साथ स्त्रियो के रक्क गुल्म मे लाभप्रद होती है ।
।
अनुपान - उष्णोदक |
गुल्मकालानल रस - इस योग के नाम से तीन पाठ भैषज्यरत्नावली मे मिलते है । गुल्मकालानल रस के दो तथा बृहत् गुल्मकालानल रस नाम से । यहाँ पर एक उत्तम योग का पाठ दिया जा रहा है ।
शुद्ध पारद, शुद्ध गंवक, शुद्ध हरताल, ताम्र भस्म, शुद्ध टकण एव यवक्षार प्रत्येक २ तोला, नागरमोथा, पिप्पली, शुठी, कालीमिर्च, गजपीपल, हरीतकी, वच और कूठ प्रत्येक का चूर्ण १ तोला । प्रथम पारद और गधक की कज्जली बनाकर शेप द्रव्यो को संयुक्त करके, पित्तपापडा, मोथा, सोठ, अपामार्ग, पाठा, भृगराज, धतूर के पत्र के स्वरस या कपाय की पृथक्-पृथक् एक एक भावना देकर घोटकर सुखाकर शीशी मे भर लेवे । मात्रा ४- रत्ती । अनुपान हरीतकी चूर्ण २ माशा और मधु से दिन मे दो बार । गुल्म रोग मे उत्तम कार्य करना है ।
नागेश्वर रस - शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, नागभस्म, बगभस्म, शुद्धमन.शिला, शुद्ध नवसादर, यवक्षार, सज्जिका क्षार, शुद्धटकण, लौहभस्म, ताम्र भस्म और अभ्रक भस्म १-१ तोला । सर्वप्रथम पारद एवं गधक की कज्जलो बनाकर शेप द्रव्यों को सयुक्त करे । फिर यूहर के दूध ( स्नुहोक्षीर ) को एक भावना दे । पश्चात् चित्रक-अडूसा अथवा दन्ती स्वरस को एक एक भावना दे । फिर सुखाकर शीशी में भर ले | मात्रा १-२ रत्ती । अनुपान - ताम्बूलपत्र स्वरस ओर मधु । "इसके प्रयोग से शोथ, आध्मान, प्लोहावृद्धि, यकृत् वृद्धि तथा गुल्म ठीक होता हैं ।
प्रवाल पंचामृत--प्रवाल भस्म २ तोला, मुक्का पिष्टि, शखभस्म, शुक्ति भस्म, वराद भस्म ( कोडी का भस्म ) । अकक्षीर ६ तोला । अर्कक्षीरं से सभी द्रव्यों को भावित करके शराव-सम्पुट मे रखकर एक-दो पुट दे । इसमे