________________
५२२.
भिपकार्य-सिद्धि मिन् वरल करे। फिर उसमें चकरी के दूध की एक भावना और आंवले के बाकी १ भावना देकर, ४-४ रत्ती की गोलियां बना मुखाकर गीगियो में भर
र न ले। माना १.२ गोली बकरी के दूध से ग्रा-ठण्डे जल से दे । सभी प्रसार के गृलो में विशेषतः परिणाम बेल में लाभप्रद रहता है।
त्रिगुणात्य रस-मुहागे को ग्वील, मगङ्ग भस्म, स्वर्ण भस्म, गुद्ध गन्धन तया रस मिन्दुर नमभाग में लेकर बदरक के रस में एक दिन तक भावित कर सम्युट करके गजपुट में एक बार फूक दे। स्वाम-गीतल होनेपर निकाल कर प्रयोग करे । मात्रा २-८ रत्ती । अनुपान सेंधानमक, भुना जीरा, भुनी होग प्रत्येक २ रत्ती, म ६ मागे और घृत १ तोले के साथ । परिणाम पल में न लानप्रट होता है। पार्वगल और छाती के दर्द में विशेष लाभप्रद ।
धात्री लोह-अच्छे पके हुए नांवलो को तोड़कर उनकी गुठली पृथक बरे, फिर छाग में सुखाकर उसका कपड़छन चूर्ण करे । इस प्रकार तैयार किया हया अविने का चूर्ण ३२ तोला, लौह भस्म १६ तोला, मधुयष्टि चूर्ण-८ तोले । मुत्रको एकत्र कर नानी गिलोय के रस में मर्दन कर के कपडछन चूर्ण बना लें। मात्रा ५-१० रत्ती। अनुपान वृत और मधु । भोजन के पूर्व, मध्य एवं अन्त में ।
समामृत लोह-मूली, हरट, बहेरा, आंवला और लोहभस्म प्रत्येक १-१ नोला । खन्न में एकत्र महीन पोस कर रख ले। मात्रा १ माशा । अनुपान नहद तोला मोर घो १ तोला के साथ। यह योग परिणाम शूल के मनिरिक्त तिमिर नामक नेत्र रोग में भी लाभप्रद है।
इन लोह योगो के अतिरिक्त भी कई लोह योग जैसे गूलराज लोह, वैश्वानर लोह, चतु.मम लौह, लौहामृत और लौह गुटिका आदि कई योगो का मूलाधिकार में वर्गन बाया है । मण्डूर के भी कई योग पाये जाते है, जैसे-चतुःसम मण्डूर, भीमवटा मगदूर, तारा मण्डूर, गतावरी मण्डर, बृहत् शतावरी मण्डूर तथा गुड मदर। ये सभी योग, पुराने परिणाम शूल में जब पोषण की कमी से रक्ताल्पता हो जाती है, उत्तम कार्य करते हैं। इन लोह या मगदूर के योगो को पान्नुराग का चिकित्सा में भी व्यवहार किया जा सकता है। यहाँ पर एक भटूर का योग दिया जा रहा है
नारा सण्डर-वायविडन्त, चित्रक की जड़, चव्य, हरीतकी, विभीतक, आँवला, मोठ, मरिच, छोटी पीपल प्रत्येक का चूर्ण १-१ तोला, मण्दूर भस्म १ तोला, गोमूत्र १८ तोला और पुराना गुड ९ तोला । कलईदार कड़ाही में रख अग्नि पर चढ़ाकर पाक बरं । जब पकते २ पिण्ट के रूप में हो जावे तो उतार घृत से निध भाण्ड में रख ले। मात्रा १ मागा। दिन में तीन बार प्रातः एवं