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भिषम-सिद्धि गृड का उपयोग भी उत्तम रहता है। गेहू, जो या पुराने चावल का मण्ड बना कर उसमे घी डालकर कई वार पिलाना उत्तम रहना है । पीने के लिये गर्म करके टडा किया जल अथवा नारिकेल जल (डाभ का पानी) देना चाहिये। ___ कई बार सत्तू का उपयोग भी परिणाम शूल मे लाभप्रद पाया जाता है। मलाई युक्त दही के साथ जी या मटर का सत्तू केवल खाने को दिया जावे, साथ मे दूसरा भोजन न दिया जाये तो उत्तम लाभ दिखलाई पढ़ता है । दालो में मटर की दाल परिणाम शूल मे अनुकूल पडती है। मटर की पतली. दाल बना कर उसमें जी का सत्त मिलाकर पीने से शीघ्र शूल में लाभ पहुंचता है। पुराने तथा नवीन उभयविध परिणाम शूल में ही हितकर होता है ।
औषध--मासरसो में जाङ्गल पशु-पक्षियो के मांसरस उत्तम रहते है । आज कल मासरसो के बहुत से योग (Protienous diet) अंग्रेजी दवाखानो में मिलते है । इनका उपयोग जाङ्गल मासरसो के अभाव में किया जा सकता है। रोगी के दोपो के संशोधन के लिये वमन, विरेचन तिवत मधुर द्रव्यो से कराना चाहिये । आवश्यकतानुसार वस्ति (Enema) देकर भी कोटशुद्धि करनी चाहिये ।२ . ' भेपज योग-१. निर्मास गम्बूक (धोधे) की भस्म १ माशा की मात्रा में घृत के साथ चटाकर ऊपर से गर्म जल पिलाने से शूल में सद्यः शान्ति मिलती है। २. शख भस्म, सेंधानमक, सोठ, मरिच, छोटो पीपल और घी में भुनी होग। समभाग मे लेकर। मात्रा २-४ माशा गर्म जल से देना सद्यः शूल शामक होता है । ३. शंख चूर्ण-शख भस्म, सेंधानमक, सोचलनमक, विडनमक, सामुद्रलवण, खनिजलवण, यवक्षार, शुद्ध सुहागा, जायफल, सॉफ, अजवायन पी में भुनी होग, सोठ, कालामिर्च, छोटी पीपल । इन द्रव्यो को समभाग में लेकर महीन चूर्ण कर ले। मात्रा २ माशा गर्म जल के अनुपान से सेवन यह सभी प्रकार के शूलो में जैसे-~यकृच्छूल, पित्ताशय शूल ( Biliary colic), मात्रशूल ( Intes tnial colic ), परिणाम शूल तथा अन्नद्रव गल (Peptic ulcer ), में १. दध्नाऽनूनसरेणाद्यात् सतीनयवशक्तुकान् ।
अचिरान्मुच्यते शलान्नरोऽन्नपरिवर्जनात् ।। य. पिवति सप्तरात्र शक्तूनेकान् कलाययूपेण ।
स जर्यात परिणामज मूल चिरजमपि किमुत नूतनजम् ।। २. वमनं तिक्तमधुरविरेकरपात्र शस्यते ।
वस्तयश्च हिता. गले परिणामसमुद्भवे ॥
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