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भिपकम-सिद्धि नवग्रह रस-(नवग्रही शिरोराज भूपण रम)--शुद्ध किया हुआ सखिया विप, शुद्ध हिंगुल, शुद्ध गधक, शुद्ध पारद, शुद्ध खडिया मिट्टी (दुग्ध पापाण), गुद्ध नीला तूतिया, शुद्ध हरताल, शुद्ध मन शिला और शुद्ध खपर। इन सव द्रव्यो को सम प्रमाण मे लेकर वारीक चूर्ण करके करेला और नीम के रस में ६-६ घण्टे तक मर्दन करके, ६.७ कपडमिट्टी किये हुए आतशी शीगी मे भरकर मुख बन्द कर वालुका यंत्र में चढाकर एक दिन तक अग्नि जलाकर पाक करे । फिर स्वाङ्ग-शीतल होने पर निकाल कर प्रयोग करे। मात्रा १ चावल भर मक्खन के साथ दिन में दो बार । समस्त बात रोगो मे लाभप्रद । - , मल्ल सिंदूर-गुद्ध पारद ९ भाग, गुद्ध रसकपूर ९ भाग, शुद्ध गधक ५॥ भाग, शुद्ध सखिया ४॥ भाग । प्रथम पारद-धक को कज्जली करे। पीछे उसमे रम कपूर और मखिया मिलाकर घृतकुमारी के रस में दो दिनो तक मर्दन करे । ७ कपडमिट्टी की हुई शीशी मे भर कर दो दिनो तक वालुका यत्र में पकावे । स्वाग-शीतल होने पर शीशी को तोडकर भीगी के गले मे जमे हुए मल्ल सिन्दूर को निकाल कर तीन दिनो तक खरल मे पीस कर खूब महीन होने पर शीगी में भर कर रख ले। मात्रा आधा से १ रत्ती दो बार सितोपलादि चूर्ण १॥ मागा और शहद के साथ । उपयोग-सव प्रकार के वात एवं कफ के रोग में विशेपत. अदित तथा पक्षाघात मे तथा तमक श्वास रोग मे अच्छा लाभ होता है।
विशिष्ट क्रियाक्रम-जैसा कि ऊपर में बतलाया जा चुका है कि बात च्यावि का अध्याय एक बहुत बडा अध्याय है, इसमें अनेक रोगो का समावेश हो जाता है। ऊपर में बताये गये सामान्य योगो का यथारोग, देश, काल, वल, ऋतु, आदि का विचार करते हुए उपयोग करने से सर्वत्र पर्याप्त लाभ होता है । अव सक्षेप में प्रमुख रोगो का पृथक्-पृथक क्रिया-क्रमो का आख्यान किया जा रहा है।
कोप्टगत वात-मे क्षारो का प्रयोग उत्तम रहता है। इसके लिये क्षारगज २ मागा तथा हिग्वादि वटी का मिश्रित प्रयोग उत्तम रहता है। हिंग्वादि वटी १ एवं क्षारराज २ मागा एक में मिलाकर । एक छटाँक जल में बनाये चीनी के गर्वत में छोटकर नीबू का रस मिला कर पीना । यदि दोप आमाशय तक ही सीमित हो तो वमन कराना, लंघन और उदर का स्वेदन सर्वत्र लाभप्रद १ रमरमविधू नवाक्षी मापुचतु सुवर्णवलिमल्ली। ,
कूप्या यह्न विपचेत् पवनकफो हन्ति मल्लसिन्दूर.।। सिद्धभेपजमणिमाला।