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________________ ४६८ भिपकर्म-सिद्धि यह सिद्ध वात रोग नाशक तेल है। नारायण तैल नामक कई पाठ मिलते हैं-नारायण तेल, मध्यम नारायण तेल तथा महा नारायण तेल । इनमे से एकपाठ गाङ्गघर के अनुसार यहा उद्धृत किया गया है । उत्तम कार्य करता है। विष्णु तैल-शालपर्णी, पृश्निपर्णी, वला, शतावरी, एरण्डमूल, बड़ी कटकारी मूल, छोटी कंटकारी मूल, करज को जड, अतिवला, या गोरखमुण्डी को जड, कटसरैया की जड प्रत्येक ४-४ तोले । सवको लेकर पत्थर पर पीसकर कल्क बनावे । फिर इस कल्क को मूच्छित तिल तेल ६४ तोले, बकरी या गाय का दूध २५६ तोले, जल १०२४ तोले यथाविधि, मद आच पर पाक करे । पाक होने पर छान कर शीशियो में भर कर रख ले। फिर यथावश्यक पीने के लिये, नस्य के लिये और मालिश के लिये उपयोग करे। विष्णु तैल नाम से भी स्वल्प, मध्यम और वृहत् नाम से तीन योग भैपज्यरत्नावली मे सगृहीत है । यहा पर स्वल्प विष्णु तैल का एक योग उद्धृत किया गया है । जो वहुविध रोगो मे लाभप्रद होता है । विष्णु तैल, नारायण तेल, माप तेल या प्रसारणी तैल, सभी बडे सिद्ध एव परम वीर्यवान् योग है जो अनेक गुणो से युनत होते है और बहुत प्रकार के रोगो में लाभ करते है ।' क्लव्य, हृच्छूल, पार्वशूल, अविभेदक, पाण्डु, मूत्र के गेग, क्षोणता, वार्धक्य दोष, क्षयरोग, आत्रवृद्धि, गण्डमाला, वातरक्त, अदित तथा वध्या स्त्रियो के पुत्र जनन मे भो समर्थ होते है । पशुवो की चिकित्सा मे भी इन का व्यवहार आशु लाभप्रद होता है। वात रोगाधिकार मे पठित तैलो के दो प्रकार पाये जाते है । एक वे जिनमे निर्विप और बृहण एवं पौष्टिक औषधियां पडी है। दूसरे वे जिनमे सविप द्रव्य धतूर, वत्सनाभ आदि पडे है। प्रथम वर्ग में अब तक के वर्णित सभी तैलो का ग्रहण हो जाता है। दूसरे वर्ग के कुछ तैलो का उल्लेख नीचे किया जा रहा है। प्रथम वर्ग के तैलो का पीने, वस्ति तथा वाह्य मालिश आदि मे सब तरह का उपयोग किया जा सकता है, परन्तु दूसरे वर्ग के तैलो का, १. अस्य तैलस्य पववस्य शृण वीर्यमत परम् । अश्वाना वातभग्नाना कुंजराणा तथैव च ॥ अपुमाश्च नर पीत्वा निश्चयेन पुमान् भवेत् । हृच्छ्ले, पावशूले च तयवाद्धविभेदके ॥ कामलापाण्डुरोगेपु कामलास्वश्मरीषु च । क्षीणेन्द्रिया नरा ये च जरया जर्जरीकृतां ॥ येपा चैव क्षयो व्याधिरन्त्रवद्धिश्च दारुणा । अर्दित गलगण्ड च बातगोणितमेव च ॥ स्त्रियो या न प्रसूयन्ते तामाञ्चैव प्रदापयेत् ।। भै र
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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