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मिप -सिद्धि की एवं मायुर्वेद ने एक स्वतंत्र अंग भूत-विधा के अंतर्गत ऐसे रोगो का मात्यान दिया है।
इस विनिष्ट मंग में पाये जाने वाले रोग अधिकतर सत्त्व या मन से सम्बन्ध रखने वाले हैं। मंग के प्रवर्तक नाचार्यों ने इन में प्रकट होने वाले रोगो का सम्बन्ध आगन्तुक कारणो ने जोडा तथा उन में होने वाले लक्षण-समुदाय की मना भी पूर्णतया भिन्न स्वरूप की दी तथा रोग को रोग न कहकर भूतावेग, सत्वावधा, ग्रहजुष्ट, ग्रहोपसर्ग, बागजुष्ट बादि शब्दो में आल्यान किया। इस अंग में वर्णित बावावो की व्याख्या, विनिश्चय तथा उपचार भी भिन्न स्वरूप के बतलाये।
इस मग में वहत होने वाले शब्द सभी भिन्न स्वरूप के पारिभाषिक अर्थों में व्यवहृत होते हैं। रोगो का नाम, उत्पत्ति तथा उनके उपचार सभी रहस्यमय हो मिलते है । बस्तु, भूत-विद्या नामक इन तंत्र या सग को यदि रहस्यमय रोग नया उनके उपचार का मध्याय (A chapter on Mysterious diseases & their treatment ) कहा जाय तो अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है।
अब यहाँ शंका होती है कि भूतविद्यान्तर्गत वर्णित देव-असुर-पिशाच प्रभृति या वास्तव में मनुष्य शरीर में उपसृष्ट होकर कष्ट देते है या नहीं? विषय विवादास्पद है । बहुत कुछ खण्डन और मण्डनपरक युक्तियाँ दी जा सकती है। खण्डन ना नास्तिपरक ही विचारो का ही आधिक्य पाया जाता है । वस्तु, विचारणीय यह है-भूत-प्रेत आदि स्वय अदृश्य हैं, चर्म चक्षु से दिखलाई नहीं पडते है तो फिर उनके अस्तित्व का ज्ञान कैसे होवें। इसका सीधा उत्तर यह है कि उनके प्रभाव से । जैसे-ताप और शक्ति दृष्ट नहीं होते, परन्तु प्रभाव से ही उनकी विद्यमानता का ज्ञान मंभव रहता है।
भूतादि का प्रभाव प्राय: अल्पसत्त्व (कमजोर मनोबल) के आदमियो में दिखलाई पड़ता है। महातत्त्व (दृढ मनोवल ) के व्यक्तियो अथवा पवित्र माचरण के व्यक्तिगें में इनका कोई भी प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता है। परन्तु कमजोर मन के एवं गन्दे रहनेवाले व्यक्तियों में तथा जनंस्कृत व्यक्तियों में (अगोच के कारण) बाये दिन उन पर होनेवाले प्रभावो का प्रत्यन किया जा सकता है।
दूर के देहातो में जहां शिक्षा का अभाव है, औद्योगीकरण का कमी है एवं चिकित्सा की सुविधा मुलन नहीं है-वहाँ पर प्रेत-बाधा आदि का रोगो मे सर्व प्रथम निदान योर तप-मत्र एवं यंत्र का मर्व प्रथम उपचार देखने को मिलता है। देहातो को छोट गहरों या गहरो की समीप बस्तियों में रहने वाले निम्न वाधिक स्तर के व्यक्तियों में भी हम भूत-विद्या के प्रति कम आस्या नहीं दिखलाई