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चतुर्थ खण्ड : उन्नीसवाँ अध्याय
४१३ घी और मिश्री के साथ अथवा केवल घी और चीनी के साथ खिलाने से तथा रात्रि मे नित्य त्रिफला चूर्ण ६ माशे या यष्टयादि चूर्ण ६ माशे दूध के साथ देने से भ्रम, मूर्छा तथा अनिद्रा में उत्तम लाभ होता है । शतावरी, बलामूल, द्राक्षा से सिद्ध दूध का सेवन भ्रम मे लाभप्रद होता है। ___अनिद्रा-पीपरामूल का २ माशे चूर्ण और ३ तोला पुराना गुड मिलाकर सेवन करने से निश्चित रूप में चिरकाल से नष्ट हुई निद्रा आ जाती है ।
भांग को घी मे भूनकर बकरी के दूध मे पोस पैर के तलवे मे लेप करने से निद्रा आती है । सर्पगंधा चूर्ण २ माशा गुलकद के साथ देना भी निद्राकर है ।
चद्रोदय अथवा मकरध्वज ३ रत्ती की मात्रा मे चावल के धोवन (पानी) और मधु के माथ सोने के आधा घटा पूर्व लेने से निद्रा माती है। ईख का रस, पोईगाक (उपोदिका), उडद की दाल, मद्य, मास, घृत, भैसका दूध, गोधूम (गेहूँ ), मिश्री, गुड तथा तथा मत्स्य का भोजन में उपयोग परम निद्राकर होता है। महिफेन के योग जैसे कर्पूर वटो निद्राकर होती है। - अहिफेन और कपूर के योग से बनी मंगलोदया वटी परम वेदनाशामक तथा निद्राकर होती है। परन्तु इसका प्रयोग बहुत कम, जव नितान्त आवश्यकता हो और अन्य निरापद योगो से लाभ न होता हो तब करना चाहिये ।
तन्द्रा-तन्द्रा मे त्रिफला चूर्ण ६ माशे मधु से सेवन करना तथा कटफल का नस्य देना उत्तम रहता है। ___मून्तिक रस-रससिन्दूर, स्वर्णमाक्षिक भस्म, स्वर्ण भस्म, शुद्ध शिलाजीत और लौह भस्म प्रत्येक एक तोला । शतावरी तथा विदारी के स्वरस या कपाय में भावना देकर ३ रत्ती की गोली बनावे । १ वटी की मात्रा मे दिन मे दो वार गाय के दूध और मिश्री के साथ दे । भ्रम तथा मर्छा मे लाभप्रद होता है। ____ अश्वगंधारिष्ट-असगध २३ सेर, मुसली १ सेर, मजीठ-हरड-हल्दी-दारुहल्दी-मुलैठी-रासन-विदारीकद-अर्जुन की छाल, मोथा-त्रिवृत की जड प्रत्येक आधा सेर, श्वेत सारिवा, कृष्ण सारिवा, श्वेत चदन, लाल चदन, वच और चित्रक की जड प्रत्येक ३२ तोले। सवको जवकुट करके, २ मन ५४ तोले जल मे खौलावे चतुर्थाश अर्थात् १२ सेर, १२ छटाँक ४ तोला शेष रहने पर उतार ले । क्वाथ को छान ले । ठडा होने पर उसमे धाय का फूल ६४ तोले, शहद १५ सेर, सोठमरिच-पीपल का मिश्रित चूर्ण ८ तोला, दालचीनी-इलायची और तेजपात का मिश्रित चूर्ण १६ तोला, प्रियङ्ग का चूर्ण १६ तोले, नागकेशर ८ तोला मिलाकर सबको घृतलिप्त सुधूपित मिट्टी के भाण्ड मे भर कर सकोरे से उसका मुख