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चतुर्थ खण्ड : उन्नीसवाँ अध्याय ४११ ठडे जल से भरे टव मे बैठना, मज्जन (स्नान ) या अवगाहन ( डुबकी लगाकर नहाना ), मोती-प्रवाल-स्फटिक प्रभृति मणियो का धारण करना या उनसे बने हार का धारण, कपूर, केशर और श्वेत चंदन का लेप करना, ताडपत्र या कमल पत्र के पंखे से हवा करना, चदन-खस-गुलाव-केवडा-आदि गंध द्रव्यो से निर्मित प्रपानक या शर्वत का पान करना हितकर उपचार है।
. ____नारिकेल, दाग्व, मिश्री, अनार, लज्जालु ( लज्जावती ), नील कमल, कमल के फूल प्रभृति द्रव्यो का सुगधित कपाय बनाकर पीना अथवा पित्त ज्वर मे कथित पित्तशामक उपचारो से भी मूर्छा मे लाभ होता।
रवतज मूर्छा मे भी शीतोपचार ही लाभप्रद रहता है। मद्यज मूर्छा मे हल्का मद्य पिलाना और सुलाना उपचार है। विषजन्य मूर्छा मे शीतोपचार के साथ विपनाशक चिकित्सा की भी व्यवस्था करनी चाहिये । ___ मूर्छा में दो प्रकार का उपचार प्रशस्त है। वेगकालीन तथा वेगान्तरकालीन । वेगकालीन कहने का तात्पर्य उस चिकित्सा से है जिससे रोगी की वेहोगी दूर हो वह जागृत हो जाय । वेगान्तरकालीन चिकित्सा वह है जो मूर्छा के दौरे के अनन्तर चलायी जावे जिम से रोग मे स्थायी लाभ हो सके । मूर्छा से जागृत करने के कई उपाय ऐसे है जिनसे चमत्कारिक लाभ होता है । जैसे
बोधकरी प्रक्रिया १. अंजन-शुठी, मरिच या पिप्पली को घिस कर नेत्रो में आजन करना । होश में लाने के उपाय-चंद्रोदयावर्ति, तुत्थकादि वत्ति को घिस फर अजन करने से मूर्छा तत्काल दूर होती है। • अवपीडन-नाक से फूक मारकर लहसुन से भावित औपधि चूण को नाक मे डालना । इस कार्य के लिये देव दाली ( बन्दाक) का नस्य या कायफर का महीन कपडछन चूर्ण का नस्य वडा उत्तम कार्य करता है । एक कागज का चोगा बनाकर उसको नाक में प्रविष्ट करके चूर्ण को अदर की ओर फूंक देना चाहिए ।
धूम-तीन गध वाले धूम का धुंवा देने से भी बेहोशी दूर होती है।
१ सेकावगाही मणयः सहारा शोताः प्रदेहा व्यजनानिलाश्च ।
गीतानि पानानि च गन्धवन्ति सर्वासु मूस्विनिवारितानि ।। द्राक्षासितादाडिमलाजवन्ति शीतानि नीलोत्पलपद्मवन्ति । पिवेत् कपायाणि च गन्धवन्ति पित्तज्वर यानि शमं नयन्ति ॥ (सु) २ रक्तमाया तु मूर्छाया हित शोतक्रियाविधि । मद्यजाया पिबेन्मद्य निद्रा सेवैद्यथासुखम् । विषजाया विपघ्नानि भेपजानि प्रयोजयेत् ॥ (भे र )