________________
चतुर्थ खण्ड : सत्रहवाँ अध्याय
४०१ का जल मधु के साथ सेवन । १३ जातीपत्र-चमेली की पत्ती का रस, कच्चे कैथ के फर का रस-छोटी पीपल, मरिच, मिश्री और मधु के साथ सेवन चिरकालीन वमन को भी शान्त करता है । १४ दही का पानी, पिप्पली चूर्ण मधु, मिलाकर थोडा-थोडा करके वार-बार चाटने से वमन शान्त होता है। १५ करंज ( कटु कुवेराक्ष)-करंज को कोमल पत्तियो को पीसकर सेंधानमक तथा नीबू के रस मे मिलाकर थोडा-थोटा चाटने से कफ के विकार तथा वमन सद्यः शान्त होता है। करंज के बोज को थोडा आग पर भूनकर छोटे-छोटे टुकडे करके खाने से तीव्र वमन भी गान्त होता है । १६ हरीतकी-हरोतको चूर्ण ३ माशे मधु के साथ चाटने से दोप के अधोगमन होने से वमन शान्त होता है। १७. शखपुष्पी-का स्वरस १ तोला मधु के साथ देने से वमन को शान्ति होती है । १८ मधुयष्टो और श्वेत चदन-को गाय के दूध मे पीसकर पिलाने से रक्त या रुधिर का वमन शान्त होता है। १९. धनिया और चावल को जल में सायकाल में भिगोकर दूसरे दिन । प्रात काल में मसल कर छान कर मधु या मिश्री मिलाकर पीने से छदि विशेषत. गर्भकालोन छदि का शमन होता है।' २० छोटी इलायची-को पीस कर मधु के साथ देने से भी कुछ वमन को शान्ति होती है । २१ पुदीने का ताजा रस या अर्क पीने से भी वमन मे शान्ति होती है । २२ मुलेठो, विजौरे नीबू की जड को पीस कर घी एवं मधु से सेवन करने पर भी वमन मे विशेपत गर्भिणी के वमन मे लाभप्रद होता है।
। योग-एलादि चूर्ण-वडी इलायची, लवङ्ग, नागकेसर, वेर के फल की मज्जा, धान का लावा, प्रियङ्ग, मोथा, श्वेत चन्दन तथा पिप्पली प्रत्येक का चूर्ण १ तोला कूटकर कपडछन चूर्ण बनाकर शीशी मे भर लेवे। इस चूर्ण को थोडा थोडा मुह में रखकर चूसने से या २ माशे को मात्रा मे मधु के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के वमन मे लाभ होता है ।
रसादि या पारदादिचूर्ण-शुद्ध पारद, शुद्ध गधक, कपूर, वेरकी मज्जा (वेरकी गुठली का मगज), लोग, नागरमोथा, प्रियङ्ग, सफेद चन्दन, छोटी पीपल, दालचीनी, छोटी इलायची और तेजपात । पहले पारद-गंधक की कज्जली बना
१ सतण्डुलाम्भःसितधान्यकल्कपानाद्वमिर्गच्छति गर्भिणीनाम् ।
मध्वाज्ययष्टीमधुलुङ्गमूल निष्पीड य पीतं च तदर्थकारि ।। २ एलालवङ्गगजकेसरकोलमज्जालाजप्रियडगुधनवन्दनपिप्पलीनाम् ।
चूर्णं सितामधुयुतं मनुजो विलिह्य छदि निहन्ति कफमारुतपित्तजाताम् ।। (योगरत्नावली)।