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चतुर्थ खण्ड : सत्रहवाँ अध्याय दोषानुसार प्रतिपेध--
वातिक छर्दि-१ दूध मे समान भाग पानी मिलाकर पीने से अथवा घृत और सेवा नमक मिलाकर पिलाने से अथवा मूंग और आंवले का यूप बनाकर (भुना हुआ मूग २ तोला, आँवला १ तोला, ३१ तोले जल मे खोलाकर ८ तोला गेप रहने पर ) १ तोला घी और सेंधा नमक मिलाकर पिलाने से वातिक बमन शान्त होता है । सशमन के लिये धनियाँ, त्रिकटु, शंखपुष्पी तथा दशमूल के कपाय का उपयोग करना चाहिये। .
पैत्तिक छर्दि'-अनुलोमन तथा मदु रेचन के लिये मुनक्का, विदारी कद, निशोथ, का काढा बनाकर ईख के रम मे निशोथ चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिये । मृदु रेचन होने के अनन्तर धान्य लाज का सत्तू पानी में घोलकर या मण्ड बनाकर उसमें शक्कर और मधु मिला कर देना चाहिये । जब यह पच जावे तो पुराने चावल का गोला भात बनाकर मूंग की पतली दाल या हल्के मासरम (शोरवे ) के साथ खाने को रोगी को देना चाहिये । संशमन के लिये श्वेत चंदन, कमलनाल, सस, सुगधवाला, शुठी, सोनागेरू, आमलको, अडूसा को समभाग मे लेकर कल्क (पीसकर चटनी बनाकर ) चावल के पानी और मधु से देना चाहिये । पित्त पापडा का काढा मधु के साथ पीने से पैत्तिक वमन मे गान्ति मिलती है । आँवला या कच्चे कैय का रस भी पैत्तिक वमन को शान्त करता है।
श्लैष्मिक छर्दि...-कफजछदि मे कफ एव आमदोप की शुद्धि के लिये पिप्पली, सरसो नीम की छाल, उनको समप्रमाण मे लेकर २ तोले द्रव्य को ३२ तोले जल में खोलाकर ८ तोला शेप रहने पर उसमे मैनफल का चूर्ण तोला और सेंधानमक ३ तोला मिलाकर पिलाना चाहिये ।
पथ्य में-पुराना चावल का भात, गाय की दधि और चीनी मिलाकर देना उत्तम रहता है।
१ हन्यात् क्षीरोदक पीत छदि पवनसम्भवाम् ।
ससैन्धव पिबेत्सपिर्वातच्छदिनिवारणम् ॥ २ पित्तात्मिकाया त्वनुलोमनाथ द्राक्षाविदारीक्षुरसैस्त्रिवृत् स्यात् । (च द्र) ३ कफात्मिकाया वमन प्रशस्त सपिप्पलीसर्षपनिम्वतोय । पिण्डीतक सैन्धवसप्रयुक्तश्छा कफामाशयशोधनार्थम् ॥