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भिपधर्म-सिद्धि
२ मा घृत के साथ सेवन । २. बेर की पत्ती को घी मे भूनकर सेंधानमक मिलाकर मेवन १३ जीवनीय गण को औषधियो से मिद्ध दुग्व में चीनी और शहद मिलाकर सेवन । ४. यामलको फल ताजा या अभाव आमलकी चूर्ण ३ मागे गर्म दूध के माथ सेवन ५ विभीतक (वहेहे ) के फल का छिल्का लेकर उनका चूर्ण बनाकर २ मागे पिप्पली चूर्ण १ मागा और सेंधानमक १ माशा मिलाकर सेवन करना। भेपज-योग
चव्यादि चूर्ण-चव्य, अम्लवेत, सोठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, इमली के बीज, तालीश पत्र, श्वेत जीरा, वशलोचन, चित्रक, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपात-प्रत्येक का एक-एक तोला और कुल चूर्ण के बरावर अर्थात् १३ तोला पुराना गुट मिलाकर एका महीन पीसकर रखले । सभी प्रकार के स्वरभेद में लाभप्रद रहता है। मात्रा ३-६ मागे । अनुपान गर्मजल ।
निदिग्धिकावलेह-छोटी कटेरी ५ सेर, पिपरामूल २॥ सेर, चित्रक मूल १। मेर, दशमूल की ओपधियां । सेर, जल २५ सेर । क्वाथ बनाकर चौथाई शेप रहने पर उतार कर छान ले । अव इस क्वाथ की कडाही में रख भाग पर चढावे । उसमे पुराना गुड ३ सेर मिलाकर गाढा करे । जव अवलेह जैसे होने लगे तो उसमे पिप्पली चूर्ण ३२ तोले, निजात ( दालचीनी, छोटी इलायची और तेजपात ) ३२ तोले, काली मिर्च का चूर्ण ४ तोला मिलाकर पाक को उतार ले । ठहा हाने पर उसमें मधु १६ तोला मिलाकर रखले । दीर्घफालीन स्वरभेद में लाभप्रद है। प्रतिश्याय, कास में भी लाभप्रद होता है। मात्रा ६ मारो से १ तो अनुपान दूध या उष्ण जल ।।
किन्नरकंठ रस-शुद्ध पारद, गुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म प्रत्येक १ तोला, वक्रान्त भम्म ३ मागे, स्वर्ण भस्म १३ माशा और चादी की भस्म ६ मागा। मड मे, भारङ्गो, वडी कटेरी, अदरक, ब्राह्मी के स्वरस या क्वाथ की पृथक्-पृथक् एक भावना । २ रत्ती की गोलियाँ। अनुपान शुण्ठी, गककार और मधु ने सेवन ।
इम गुटिका के सेवन से स्वरभेद दूर होता है। कंठ कोकिल-स्वर हो जाता है।
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१ वदरीपत्रकल्क वा धुतभृष्टं ससैन्धवम् ।
स्वरोपघात कासे व लेमत प्रयोजयेत् ॥