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चतुर्थ खण्ड : चौदहवां अध्याय
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भार फूल को समभाग मे लेकर २ माशे की मात्रा मे मधु से चटाना । १२ छोटी पोपल का तूर्ण, सजूर और नागर मोथे का समभाग मे बना चूर्ण ३ माशे की मात्रा में मधु ने चटाना। ये सभी श्रेष्ठ हिक्कानाशक भेष में है ।' १३ विजौरे निम्बू का रस १ तोला, काला नमक २ माशे और मधु ६ माशे मिलाकर सेवन
१४ सोठ पकाया बकरी के दूध का सेवन । १५. धान्यलाज का चूर्ण सेंधानमक नीबू रन के साथ सेवन । १६ गर्म घी का सेवन, गर्म किये दूध का सेवन तथा गर्म जल का मेवन हिक्का में पथ्य होता है और शीघ्रता से हिचकी को शान्त करता है। १७ खजूर, पिप्पली, द्राक्षा का घी अरि मधु से सेवन हिक्का और श्वास दोनो में लाभप्रद होता है ।
रस तथा भस्म के योग-कान्त लोह भस्म १ रत्तो को मात्रा मे मधु से चाटकर दशमूल का क्वाथ सेवन । मुक्ता भस्म का १ रत्ती की मात्रा में लेकर कुटकी चूर्ण ४ र० और शुद्ध गैरिक चूर्ण १ माशा और मधु के साथ सेवन । ताम्र भस्म का ३ रत्ती को मात्रा में मधु के साथ चाटकर निम्बू ( विजौरे ) का रस १ तोला पीना । स्वर्णभस्म-मुक्ताभस्म-लौह भस्म तथा ताम्र भस्म सम मात्रा मे मिलाकर १ रत्ती की मात्रा में वीज पूर या विजौरे नोबू का रस, काला नमक और मधु के साथ सेवन सद्य हिक्का का शमन करता है । शंखचूल रस-शुद्ध पारद, अभ्रक भस्म, सुवर्ण भस्म, वैकान्त भस्म प्रत्येक १ तोला, शंख भस्म २० तोले । इन द्रव्यो को महीन पीसकर सूखे ही चूर्ण बना ले। मात्रा २ माशे । अनुपान मधु । यह योग मुमूर्प रोगी की भी हिक्का को तत्काल शान्त करता है ।
श्वास रोग-भी हिक्का के समान ही एक महाव्याधि है । यह भी प्राणघातक होती है । इस श्वास रोग मे कफप्रकोप पूर्वक वायु जब प्राणवाही स्रोतो को अवरुद्ध करके सव ओर व्याप्त (पूरे फुफ्फुस में ) हो जाती है तो श्वास को उत्पन्न करती है। इस रोग में प्रधान लक्षण श्वास का फूलना या दम का
१ कोलमज्जाजन लाक्षा तिक्ता कोचनगरिकम् । कृष्णा घात्री सिता शुण्ठी काशीसं दधिनाम च । पाटल्या सफल पुष्पं कृष्णाखजूरमुस्तकम्। पडेते पादिका लेहा हिक्काना मधुसयुता ॥ (भै र.)
२. मधुसौवचलोपेतं मातुल गरस पिवेत् । (भै र ) इसका प्रयोग ureamia के कारण उत्पन्न हिक्का मे उत्तम लाभ दिखलाता है।
३. यदा स्रोतासि सरुद्धय मारुत कफपूर्वक.। विपरव्रजति सरुद्धस्तदा श्वासान् करोति स || महोव-छिन्न-तमक-क्षुद्रभेदैस्तु पञ्चधा। भिद्यते स महाव्याधि. श्वास एको विशेषत ॥
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