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________________ चतुर्थ खण्ड : तेरहवा अध्याय ३६५ पंचमूली कपाय—बृहत पचमूल का काढा पिप्पली चूर्ण का प्रक्षेप देकर पिलाने से वात कास मे लाभ होता है । १ क्रियाक्रम पित्तकास में यदि कफ की अधिकता हो तो घी से वमन कराना हितकारी होता है । वमन कराने के लिये मदनफल, गाम्भारी का फल और मुलैठी का काढा पिलाकर अथवा इन औपधियो से सिद्ध घृत पिलाकर अथवा मदनफल और मलेठी को पीसकर उसका कल्क बनाकर विदारीकद या गन्ने के रस मे घोलकर उसे पिलाकर वमन कराना चाहिये ।२। पत्तिक कास में यदि कफ हो तो मधुर द्रव्यो से मिश्रित निशोथ का प्रयोग और यदि कफ गाढा हो तो तिक्त द्रव्यो के साथ संयुक्त करके निशोथ का प्रयोग विरेचन के लिये करे । दोषो के निकल जाने पर शीतल, मधुर और स्निग्ध पेया औषधि आदि का उपयोग कफ के पतले होने पर तथा कफ के गाढा होने पर रून, तिक्त और शीतल क्रियाक्रम रखना चाहिये । पथ्य-कफ के गाढे होने पर पित्तज कास मे जाङ्गल मासरसो के साथ या मूंग की दाल या मधुर द्रव्यो के साथ जौ, सावा, कोदो आदि के चावल का भात बनाकर तिक्त रस शाको का उपयोग मात्रा मे करना चाहिये। यदि कफ पतला निकलता हो तो चावल या साठी के चावल का उपयोग मासरस के साथ करना चाहिये । पीने के लिये गन्ने का रस, अगूर का रस, मुनक्के का प्रयोग अथवा शर्वत या दूध का प्रयोग करना चाहिये ।४। भेषज योग-लेह-द्राक्षामलकादि-मुनक्का, मुलैठी, आंवला, खजूर ( या छुहाडा ), पिप्पली, मरिच का कल्क बना कर घी और मधु के साथ सेवन । १ पंचमूलकृत क्वाथ पिप्पलीचूर्णसयुत । रसै समश्नतो नित्यं वातकासमुदस्यति ॥ (च द ) २ पित्तकासे तनुकफे त्रिवृता मधुरैर्युताम् । युञ्याद्विरेकाय युता धनश्लेष्मणि तिक्तकैः। ३ हृतदोषे हिम स्वादु स्निग्धं ससर्जन भजेत् । ___ घने कफे तु शिशिर रूक्षं तिक्तोपसहितम् । ४ मधुरैर्जाङ्गलरसयवश्यामाककोद्रवा । मुद्गादियूष शाकैश्च तिक्तकमत्रिया हिता ॥ घने श्लेष्मणि लेहाश्च तिक्तका मधुसयुता । शालय स्यात्तनुकफे पप्टिकाश्च रसादिभि । शर्कराम्भोऽनुपानाथ द्राक्षेक्षुस्वरसा पय । (वा. चि. ३)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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