SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३० भिषकर्म-सिद्धि उपर्युक्त सभी द्रव्य कमहर परन्तु पित्तवर्द्धक है-गाखात्रय दोप-पित्त की वृद्धि कराने का उद्देश्य कोष्ठानयन अर्थात् पित्त का स्वस्थानानयन के अतिरिक्त और कुछ नही है। आचार्य मुश्रुत ने लिखा है दोपो का स्वस्थानानयन वृद्धि मे, अभिष्यंदन , पाक होने से, स्रोतोमुख के विगोधन से तथा वायु के निग्रह । मे (गाखागत दोप शाखामओ को छोडकर स्वस्थान अर्थात् कोष्ट मे मा जाते है ) सभव रहता है ।' पश्चात् कामला की सामान्य चिकित्सा करते हुए रोगी की रोगमुक्त करना चाहिये। शाखाश्रित कामला का चरकोक्त वर्णन-हक्ष, गीत, गुरु-स्वादु व्यायामाविक्य एवं वेगो को रोकने से कफ से मिल कर वायु पित्त को अपने स्थान ( कोट ) से खीचकर वाहर को गाखामो मे मचालित कर देता है जिसमे रोगी की त्वचा-रक्त-नेत्र-मत्र हारिद्र वर्ण (हल्दी के रंग ) के हो जाते है और पाखाने का रंग सफेद ( श्वेत ) हो जाता है। रोगों के उदर मे सुई चुभाने जैसी वेदना, विवध, मा०मान, अफारा, हृदय का भारीपन, दुर्वलता, अग्नि की मदता, पागल (दाहिनी ओर यकृत प्रदेश पर पीडा या स्पर्शासह्यता (Tenderness ), अन्न में अरुचि, ज्वर आदि लक्षण क्रमग रोगी में पैदा हो जाते है । अल्प पित्त के गासा-समाधित होने पर ये लक्षण रोगी में उपस्थित रहते है। कुम्भकामला-प्रतिपेध-कामला की एक जीर्णावस्था है जिसमें रोगी के पैरो पर गोथ और सविगूल का उपद्रव पैदा हो जाता है। फलत. यह कामला की अपेक्षा अधिक कष्टमान्य हो जाता है 13 इसमें रोगी को लवणवयं आहारदूध और रोटी पर रखना चाहिये । इसमे कोष्ठाश्रया कामला को सम्पूर्ण चिकित्सा करनी चाहिये । इसमें अधिक से अधिक पुराने मण्डूर को भस्म बना कर बडी मात्रा-१ मागा की मात्रा दिन में तीन वार मधु के साथ सेवन करने के लिये देना चाहिये। साथ ही फलत्रिकादि कपाय को एक-दो वार दिन में पीने के लिये देना चाहिये। १ वृद्ध्याभिज्यदनात् पाकात् स्रोतोमुखविगोधनात् । गाखा मुक्त्वा मला कोष्ठ यान्ति वायोश्च निग्रहात् । २ क्षगीतगुरुस्वादुव्यायाम।गनिग्रह । कफसम्मूच्छितो वायु. स्थानात् पित्त क्षिपेली। { मुसू २८) हारिद्रनेत्रत्वकश्वेतवर्चास्तदा नरः । भवेत्साटोपविष्टम्भो गुरुणा हृदयन च । दीर्वत्या पाग्निपार्वात्तिहिवकारवासारुचिज्वरै । क्रमेणारपेनुसज्येत पित्ते गाखासमाश्रिते ।। (च चि १७) ३ भेदस्तु तस्या खलु कुम्भसाह्व. गोथो महास्तत्र च पर्वभेदः (सु )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy