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का पाँचो खण्ड परिशिष्टाधिकार का है, नियमें भवशिष्ट गंगनी film का भाख्यान पाया जाता है।
रोगों के प्रतिपेध लिखने में हम बात का प्रयास भरमा जिया गया। कि तद् न गंगा की चिकिया . उपनम ( Line o! TECH 17 Therapy ), फिर उन-उन रोगों में प्रलने वाले मजाधियो नया गीत पृथक् पृथक् (Singlc Drugs and Compounds) मुविधानि रंग से प्रार किये जायें। इन विविध औषधियों या योगों में से किसी को
मु ना अल्पवीर्य और कुछ को अधिक चीर्यवान नाहीं समझना भाटिये। ये सभी समान भाव से उपयोगी एवं कार्यशम । रोगी नया रोग बरु, र, साम्य, नातुः मात्रादि का विचार करते उप पिसी एक छोटे से योग का प्रयोग अल्प, मध्य या अधिक मात्रा में करते उप पूर्ण काया मागी चिकित्सक बन सकता है। इस ग्रन्थ के सभी प्रयोग गाय
माप अधिकतर या तो लेखक के अभ्यास में बरम लाभप्रद अथवा विभिन्न पसा के चिकित्सकों के कर्म में अनुभूत एवं टफल है। रचना में बाली ओपधियो (एक-एक ओपधि ), औषधि (काटीपधि या रम योग) नया भेपजों (आधिदैविक तथा आध्यात्मिक उपनम) आरपान मा है। ये सभी स्वतंत्रतया तथा समरत रूप मे नत्-ता रोगों में समान भाव में उपयोगी है। इस कथन का तात्पर्य यह है कि यह अन्य एक संग्रह ( Collection ) मा. न होकर संचयन ( Selection ) के उपर व्यवस्थित है। इसमें चु प ओपधि योगों का ही चयन किया है। चयन के उपर व्यवस्थित होने के कारण पुस्तक के सिद्ध योगों की चिकित्सा कर्म में उपादेयता यतः सिद्ध है मी उपादेयता के विचार से ही पुस्तक का नामरण 'भिपस्वमिटि' पिया गया है। फलितार्थ यह है कि इस एक पुस्तक का अनुसरण परके चित्रिमा करते हुए भिपक या चिकित्सक को अपने चिकित्सा-कार्य में पूर्ण विधि या सफलता प्राप्त हो सकती है।
इसकी रचना में इस बात पर सतत ध्यान रखा गया है कि पुन्तक आयुर्वेद विद्यालयों के छात्रों तक क्रियाभ्यास करने वाले चिकित्सक रिए समान भाव से उपयोगी हो सके ।
- कृतज्ञता-प्रकाशन इस ग्रंथ के लेखन का विचार बहुत दिनों से कल्पना में था। फलत इसके विविध अध्याय विविध अवसरों पर लिखे गये हैं। उदाहरणार्य प्रथम खण्ड का 'निदान पंचक' वाला अध्याय गवर्नमेण्ट आयुर्वेद कालेज पटना के संयोजित