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चतुर्थ खण्ड : आठवां अध्याय
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रस के योग : अर्शकुठार रस- शुद्ध पारद १ तोला, शुद्ध गधक २ तोला, लौहभस्म, ताम्रभम्ग, प्रत्येक दो तोला, दन्तीमूल चूर्ण, त्रिकटु चूर्ण, सूरणकद चूर्ण, चालोचन चूर्ण, सैन्धव लवण, शुद्धटकण, यवक्षार, इनमे प्रत्येक ५ तोले, स्नुही क्षीर ८ तोले | पहले कज्जली बनाकर पश्चात् इन चूर्णों को छोडकर महीन पीसकर - ३२ तोले गोमूत्र मे मिलाकर अग्नि पर चढा दे, समग्र औपवि का पिण्ड रूप आने तक पाक करे । फिर सुखाकर चूर्ण रुप मे पीसकर शीशी मे भर ले | मात्रा १ माशा । अनुपान गुलकद या १० मुनक्के की चटनी से । यह एक सुन्दर योग है - अर्श के प्रकोपकाल मे ( Inflammed piles ) प्रयुक्त होकर तीन दिनो मे पर्याप्त लाभ दिखलाता है ।
चञ्चत्कुठार रस — शुद्ध पारद २ तोला, शुद्ध गधक २ तोला, लौह भस्म २ तोला, गुण्ठी, मरिच, पिप्पली, दन्तीमूल, मीठा कूठ, प्रत्येक का एक-एक तोला, कलिहारीमूल चूर्ण, यवक्षार, सैन्धव, शुद्ध सुहागा ( टकण ), गोमूत्र ३२ तोले, स्नुही क्षीर ३२ तोले । खरलकर पिण्डीभाव तक पाक । फिर शीतल हो जाने पर मुसा कर चूर्ण रूप या वटी रूप मे बना ले । मात्रा २ रत्ती प्रात. सायम् । गुलकंद या १० मुनक्के की चटनी से ।
नित्योदित रस ( भल्लातक युक्त) — रस सिन्दूर, अभ्रक भस्म, लोह भस्म, ताम्र भरम, शुद्ध वत्सहाभ विप प्रत्येक १ तोला शुद्ध भल्लातक चूर्ण ६ तोले । सव एकत्र महीन घोट पीस कर सूरणकद और मानकद के स्वरस से तीन दिनो तक भावना दे । सुखा कर शोशी मे भरलं । मात्रा १ माशे । घृतके साथ |
चन्द्रप्रभा गुटिका - वायविडङ्ग, त्रिकटु, त्रिफला, देवदारु, चव्य, चिरायता, पिप्पलीमूल, मुस्तक, कचूर, वच सुवर्णमाक्षिक, सैंधव, यवक्षार, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, नेपाली धनिया, प्रत्येक एक तोला, शुद्ध शिलाजीत ३२ तोले, शुद्ध गुग्गुल ८ तोले, लौह भस्म ८ तोले लेकर पीस कर वस्त्र से छानी हुए वशलोचन, दन्तीमूल, दालचीनी या त्रिसुगंध ( छोटी इलायची, दालचीनी, तेजपत्र ) सव को अच्छी तरह घोट कर ४ रत्ती की गोलियाँ बना ले । यह एक सिद्ध योग है जिमका प्रयोग बहुत प्रकार के रोगो मे होता है । विशेषतया मधुमेह, बहुमूत्र ( Diabeties ), पोरुपग्रथिवृद्धि ( Enlarged Prostate ), रक्ताल्पता, दोर्वल्य तथा अर्श रोग मे लाभप्रद पाया गया है । मात्रा - १-२ गोली । अनुपान - चीर ।
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यष्टयादि चूर्ण या मधुयष्टयादि चूर्ण - मधुयष्टि, सनाय की पत्ती प्रत्येक २ भाग, सौफ, दारुहरिद्रा और शुद्ध गधक प्रत्येक एक भाग, १६ भि० सि०
मिश्री