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चतुर्थ खण्ड : आठवॉ अध्याय २८७ कुजट लेह-कुटज का कपाय बनाकर उसमे गुड, घृत मिलाकर गाढा करना उममे निम्नलिखित द्रव्यो का प्रक्षेप-शुद्ध भल्लातक, वायविडङ्ग, त्रिकटु, निफना, रसाञ्जन, चित्रक मूल, इन्द्र जी का चूर्ण, वचा, अतीस तथा विल्व फल मज्जा समभाग में । इस लेह मे घृत और शहद मिलाकर रख ले। मात्रा १ तोला । अनुपान घृत, मधु तक या जल । सभी प्रकार के अर्श मे, ग्रहणी, अम्लपित्त तया अतिसार रोग मे भी लाभप्रद होता है।
श्री बाहुशाल गुड-त्रिवृत्, दन्तीमूल, चव्य, गोखरू, चित्रकमूल, कचूर, इन्द्रायण को मूल, नागरमोथा, शुण्ठी, वायविडङ्ग, हरीतकी प्रत्येक एक तोला, गद्ध भल्लातक ८ तोले, वृद्ध दारुक का शुद्ध वीज ६ तोले, शुद्ध शूरण कद १६ पल । इन द्रव्यो का क्वाथ बनाकर उसमे सवा ६ सेर पुराना गुड डालकर अग्नि पर चढाकर गाढा करे । पुन उसमे निम्न लिखित आठ द्रव्यो का प्रक्षेप छोडकर एक में मिलाकर रखे । प्रक्षेप द्रव्य-त्रिवृश्तमूल २ तोले, चव्यचूर्ण २ तोले, सूर णकद चूर्ण २ तोले, चित्रक मूल चूर्ण २ तोले, सूक्ष्मैला, दालचीनी, मरिच और गजपिप्पली चूर्ण प्रत्येक ६ तोले (मात्रा १ तोले) प्रतिदिन शीतल जल से । यह एक मिद्ध योग है। इसके लम्बे समय तक छ. मास या एक वर्ष के प्रयोग से अर्थ रोग अवश्य नष्ट होता है।
दन्त्यरिष्ट-दन्ती, चित्रक, लघुपचमूल (शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, वृहती, कटकारिका, गोक्षुर ), बृहत् पचमूल ( विल्व, अग्निमथ, सोनापाठा, पाटला, गाम्भारी), इनमे प्रत्येक का चार-चार तोले, तथा त्रिफला १२ तोले । इन द्रव्यो का यवकुट करके क्वाथ्य द्रव्य, जल १२ सेर, १२ छटोक ४ तोले । क्वाय करके चतुर्थाश अवशिष्ट जल मे ५ सेर पुराना गुड मिलाकर घट मे भर आसवारिष्ट विधि से सधान एक मास तक करे। फिर छानकर वोतल मे भर कर प्रयोग करे। मात्रा २॥ तोले। अनुपान समान जल मिलाकर । दोनो समय प्रधान भोजन के बाद । यह तीनवातानुलोमक और विवधहारक ( मलशोधक) होता है। जीर्ण विवध और अर्श के रोगियो मे समान भाव से उपयोगी है।
अभयारिष्ट-गुठली रहित हरीतको फल ५ सेर, मुनक्का २३ सेर, वायविडङ्ग और मधूक पुष्प (महुवे का फूल ) प्रत्येक आधासेर । इन द्रव्यो को १२ सेर, १२ छटाँक ४ तोले अर्थात् १ द्रोण जल में अग्नि पर चढाकर चतुर्थाशावशिष्ट क्वाथ बनावे । पश्चात् शीतल होने पर आसव विधि से ५ सेर पुराना गुड मिलाकर निम्नलिखित प्रक्षेप द्रव्यो को डाल कर सधान करे । प्रक्षेप द्रव्यगोक्षरु, निवृतमूल, धान्यक, धातकी पुष्प, इन्द्रवारुणी, चव्य, शतपुष्पा, शुण्ठी,