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________________ २८१ चतुर्थ खण्ड : आठवॉ अध्याय दुर्बल रोगी मे जिनमे वात-कफ का अनुबंध नही हो और ग्रीष्मकाल हो तो उनका स्तमन तत्काल करना चाहिये। रक्तजे पित्तवैशेष्याद्रक्तपित्तहरी क्रिया । प्रवृत्तमादावर्शोभ्यो यो निगृह्णात्यबुद्धिमान् । शोणितं दोपमलिनं तद्रोगान् जनयेद्वहून् ।। तस्मात्नुते दुष्टरक्त रक्तसंग्रहणं मतम् । कालं तावदुपेक्षेत यावन्नात्ययमाप्नुयात् ।। अग्निसंदीपनार्थञ्च रक्तसंग्रहणाय च । दोपाणां पाचनार्थञ्च परं तिक्तरुपाचरेत् ।। यत्तु प्रनीणदोपस्य रक्तं वातोल्वणस्य च। , वर्तते स्नेहसाध्यन्तत्पानाभ्यगानुवासनै । यत्तु पित्तोल्बणं रक्त धर्मकाले प्रवर्त्तते । म्तम्भनीयं तदेकान्तान्न चेद्वातकफानुगम् ॥ (चर), अर्श रोग मे तक्र-तक्र का निरन्तर मेवन करने से अर्श रोग नष्ट हो जाता है और नष्ट हो जाने पर पुन नही उत्पन्न होता है। ग्रहणी और अतिमार रोग मे भी तक सेवन की प्रगसा हो चुकी है। अब यहाँ अर्श समान उत्पादक हेतु होने की वजह से पुन उसका विधान किया जा रहा है । चरकने लिसा है कि जब पृथ्वी मे एक बार घास को निकाल कर उसकी जडमे तक छोडने से पुन नही उगता फिर दीप्त जाठराग्नि वाले पुरुपका शुष्क अर्श तक्र के उपयोग से कैसे-शेप रह सकता है ? तक के निरन्तर प्रयोग से भी सभी नोत शुद्ध हो जाते है, पाचन शक्ति तीव्र होती है, अन्न का सम्यक् परिपाक होने से पक्व रम पैदा होता है । उस से रक्त, मामादि धातुओ की यथाक्रम सम्यक् वृद्धि होती है। शरीर पुष्ट होता है। शरीर मे बल-वर्ण-कान्ति का उदय होता है। मन मे प्रसन्नता आती है, वस्तुत वातश्लेष्मोल्वण अर्श के लिये तक से वढ कर कोई औपध नहीं है। अर्श के रोगियो मे जिनकी अग्नि बहुत मद है उनमे कुछ दिनो तक अन्न न देकर तक्र पर ही रखना चाहिये और जब अग्नि दीप्त हो जाय तो तक के साय लधु भोजन रोगो को देना चाहिये। अग्नि के बल तथा दोप का विचार करते हुए तक का भी प्रयोग करना उत्तम रहता है। जैसे, यदि पचन शक्ति पर्याप्त हो तो अनुद्धृत स्नेह तक (बिना मक्खन निकाला), यदि पचन शक्ति मध्यम हो तो अर्घोद्धृत स्नेह ( आधा मक्खन निकाला ) तक्र और अग्नि बहुत मद हो तो रूक्ष (पूरा मक्खन निकाला ) तक पीने को दे। दोपानुसारवात की अधिकता मे अनुद्धृत स्नेह,
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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