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________________ चतुर्थ खण्ड : सप्तम अध्याय २५५ ५ पाचन के लिये कई क्वाथो का प्रयोग उत्तम रहता है-जैसे नागरादि चवाथ-गु ठी, अतीस, मस्तक अथवा धान्यक और सोठ से बने कपाय का योग नये शूल युक्त अतिसार मे लाभप्रद रहता है । धान्यपचक या धान्यचतुष्क-कपायधान्यक, शुण्ठी, मुम्तक, नेत्रवाला, बिल्वमज्जा इन पाव द्रव्यो का क्वाथ वान्यपञ्चक कहलाता है। यह आमातिसार मे आम का पाचक, विवध को नष्ट करने वाला, शल का शामक तथा पाचकाग्नि को दीप्न करने वाला होता है। धान्यपचक मे से शठी को निकाल कर शेप चार द्रव्यो से बने कपाय को धान्य चतुष्क कहते है । इसका प्रयोग पित्तातिसार मे अधिक लाभप्रद होता है। वत्सकादि कपाय-इन्द्रयव, अतिविपा, बिल्व, सुगध वाला, गुण्ठी, मुस्तक का वना कषाय आमयुक्त, शूलयुक्त अतिसार, रक्तातिसार तथा जीर्ण अतिसार या प्रवाहिका मे लाभप्रद होता है। दोपानुसार व्यवस्था-अतिसारा मे स्तभन के लिये कुटजादि कपायइन्द्रयव, दाडिम फल के छिल्के, मोथा, धाय के फूल, बेल की मज्जा, नेत्रबाला, लोध्र, रक्त चंदन एव पाठा का कपाय अतिसार तथा रक्तातिसार को वद करता है। यदि अतिसार मे वायु को अधिकता हो तो वच, अतीस, मुस्तक, इन्द्र जौ और कुटज की छाल का कपाय ( वातातिसार मे वचादि क्वाथ ), यदि पित्त की अधिकता हो तो किरात, इद्रयव और रसाजन का क्वाथ मधु मिला कर अथवा अतीम, कुटज की छाल, इन्द्रयव का समपरिमाण मे चूर्ण बनाकर चावल के पानी और मधु के साथ (पित्तातिसार मे किराततिक्तादि कपाय या अतिविषादि चूर्ण) और श्लेष्मा की अधिकता हो तो घृतभृष्ट हिगु, कालानमक, त्रिकट, अतिविषा और मुस्तक का कषाय बना कर इन्ही द्रव्यो के चूर्ण का उष्ण जल से ( श्लेष्मातिसार मे) हिंग्वादि चूर्ण का प्रयोग करना चाहिये । अतिसार मे यदि दो दो दोपो का मसर्ग पाया जावे तो द्विदोषशामक ओषधियो का योग करके चिकित्सा करनी चाहिये । पत्रपाक प्रयोग-दोषो का भले प्रकार से पाक हो जाने पर, वेदना के कहो जाने पर, दीप्त अग्निवाले मनुष्य के लिये, चिरकालीन अतिसार के रोगो मे पट-पाक सिद्ध ओषधियो का उपयोग करना चाहिये । जमे कुटज पुटपाक या स्योनाक पुटपाक या दाडिम पुटपाक । यहा पर एक कुटज पुटपाक का विधान दिया जा रहा है--'स्निग्ध और स्थूल कृमि आदि से अभक्षित को ताजी और गोली १ सवत्सक सातिविष सविल्व सोदीच्यमुस्तश्च कृत कषाय । सामे सशूले च सशोणिते च चिरप्रवृत्तेऽपि हितोऽतिसारे ॥ ( भै, र.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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