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भिपकर्म-सिद्धि जब किसी भी युक्ति से विषम ज्वर का अनुबंध नहीं टूटता तो ये उपाय अवश्य रोग को दूर कर सकते है।
विषम ज्वर में प्रयुक्त होने वाले कुछ योग-१. सप्तपर्णसत्त्वादि __ वटी-सप्तपर्ण धन सत्त्व १० तोले, कुपोल घन सत्त्व १० तोले, जेवायन घन सत्त्व
१०तोले, करज वीज को गूदी ४० तोले । सबको खरल कर मटर के वरावर की गोली बनाले । मात्रा-१ से २ गोली दिन में तीन बार या चार वार जल से ।
तुवरीमल्ल योग-सफेद फिटकिरी का चूर्ण ६ तोले, शुद्ध सखिया ११ मागे लेकर, तवे पर फिटकिरीका चूर्ण रख उसके मव्य मे मंखिया रख कर मद आँच देवे । जव फिटकरी का लावा वन जावे तो तवा को आंच से उतार कर रख लेवे । औपध के शीतल हो जाने पर खरल में चोट लेवे । मात्रा १ रत्ती से १ रत्ती तक अनुपात घृत ६ माशे। इसे ज्वर काल मे न देकर निर्विर अवस्था मे देना चाहिये । ज्वर के आने के पूर्व एकमात्रा भी देने से प्राय ज्वर का वेग रुक जाता है। ओपध पकाते समय धुवा वैद्य के मुंह पर नही लगना चाहिये।
o हरीतक्यादि वटी-बडी हरउ का दल, शुद्ध मखिया, काली मिर्च तीनो सम . भाग लेकर जल से मर्दन करके सरसो के वरावर की गोलियां बनाले । ज्वर के उतरने के बाद १-२ गोली गाय के दूध से दे । इसके सेवन से पारी वाला ज्वर उतरता है।
३. सुदर्शन चूर्ण-हरड, बहेरा, आँवला, दारु हल्दी, छोटी कटेरी, वडी कटेरी, कचूर, मोठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, पीपरामूल, मूर्वा, गिलोय, धमासा, कुटकी, पित्तपापडा, नागर मोथा, त्रायमाण, नेत्रवाला, अजवायन, इंद्रयव, भारङ्गीमूल, शिग्रुवीज, आग पर फुलाई हुई फिटकरी, वच, दालचीनी, पद्माख, खस, सफेद चदन, अतीस, बलामूल, सरिवन, पिठवन, वायविडङ्ग, तगर, चित्रक,
सोमं मानुचर देवं समातृगणमीश्वरम् । पूजयन् प्रयत शीघ्रमुच्यते विपमज्वरात् ।। ब्रह्माणमबिनाविन्द्र हुतभक्ष हिमाचलम् । गङ्गा मरुङ्गणांश्चेष्टान् पूजयञ् जयति ज्वरम्।। भक्त्या मातुः पितुश्चेव गुरुणा पूजनेन च । ब्रह्मचर्येण तपसा पुराणश्रवणेन च ।। जपहोमैश्च दानश्च सत्येन नियमेन च । ज्वराद्विमुच्यते गीव्र साधूना दर्शनेन च ॥
१ हरीतकीगम्बलवेल्लजाना कुर्याद्वटी वारिणि सर्पपाभाम् । वेग रुणद्धि प्रथम प्रदत्ता ज्वरम्य वेलेव महाम्बुराशिम् ।।
(सिद्ध भेषजमणिमाला)