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भिपकर्म-सिद्धि लाने के लिये नस्य का प्रयोग उत्तम रहता है। जैसे-असगंध, मेंधा नमक, वच, महुए का सार, काली मिर्च, पिप्मली, शुठी, लहसुन इन द्रव्यो को गोमूत्र मे पीस कर छान कर नाक मे टपकाना।
६ जिह्वक सन्निपात-विपमयता के कारण इस सन्निपात मे जिह्वा की पेशियो का घात हो जाता है ( Glaso pharyngeal paralysis) जिमसे जिह्वा स्तव्ध हो जाती है। रोगी जीभ को वाहर नहीं निकाल सकता है और न कुछ निगल ही पाता है। अस्तु इस अवस्था मे अन्य उपचारो के साथ कवल धारण कराना (Gargle ) चाहिये। १ किरातादि कवल-चिरायता, अकरकरा, कुलिजन, कचूर, पिप्पली का चूर्ण करके उसमे सरसो का तेल तथा विजौरा नीवू, कागजी नीवू प्रभृति अम्ल द्रव्यो का रस डाल कर कल्क बना कर या काढा बनाकर मुँह मे भरने के लिये देना हितकर होता है।
जिह्वा के फट जाने पर उस पर मुनक्का को पीस कर उसमे थोडा मधु और घृत मिलाकर लेप करना चाहिये ।
७ संधिक सन्निपात-इस मे विपमयता के कारण सधियो मे तीव्र पीडा, जाँघो मे जडता, मन्यास्तभ, अत्यधिक क्लान्ति, क्वचित् पक्षाघात प्रभृति उपद्रव हो जाते है । एतद् दूरीकरणार्थ इसमे वचादि क्वाथ का अन्त प्रयोग विशेपतया लाभप्रद होता है।
वचादि कपाय-वच, पित्तपापडा, जवासा, सैरेयक, गिलोय, अतीस, देवदार, नागरमोथा, सोठ, विधारा, रास्ना, गुग्गुलु, वडी दन्ती, एरण्ड और शतावरी का क्वाथ ।
८ अभिन्यास ज्वर-सन्निपात मे एक तीव्र विपमयता ( Severe toxaemia) की अवस्था है। इसमे कारव्यादिकपाय, मातुलुङ्गादि कपायअथवा शृद्धयादि कपाय (भै र ) का प्रयोग उत्तम माना गया है । कारव्यादि कपाय-कलोजी, पुष्करमूल, एरण्ड की जड, त्रायमाण, सोठ, गुडूची, दशमूल, कचूर, काकडासीगी, दुरालभा, भारङ्गी और पुनर्नवा । सम मात्रा में लेकर २ तोले द्रव्य का ३२ तोले गोमूत्र मे क्वाथ बनाकर चतुर्थाश शेप रहने पर उतार कर पिलावे। इससे स्रोतसो का सवरोव दूर होकर तन्द्रा, प्रलाप, भ्रम आदि मे लाभ होता है।
६ कंठकुन्ज सन्निपात-इस प्रकार मे विपमयता की वजह से मूकता आ जाती है । चिकित्सा में फलत्रिकादि कपाय का प्रयोग उत्तम रहता है। जैसे, त्रिफला, त्रिकटु, नागरमोथा कुटकी, इंद्रजी, वासा और हल्दी का कपाय ।