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चतुर्थ खण्ड : प्रथम अध्याय
२०३ उष्णोदक, शृतगीत जल या पडङ्ग पानीय के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिये कि या ताजे रहे वासी न हो। इसके लिये यह आवश्यक रहता है कि प्रातःकाल का बनाया हुआ जल साय काल तक चलता रहे और साय काल का बनाया जल रात में और प्रातःकाल तक चलाया जाय।
ज्वर मे आहार-अव विचारणीय है कि ज्वर काल मे रोगी को क्या आहार देना चाहिये । लघन का विधान होने पर पूर्णतया अनशन कराना अनुचित प्रतीत होता है। क्योकि बलाविष्ठान या प्राण का मूल आहार या भोजन नहीं है । “अन्न वै प्राणाः", "कलावन्नगता प्राणाः" प्रभृति श्रुतियाँ इसकी साक्षा है । एक पौराणिक कथा भी है कि कृतयुग में प्राण का अवस्थान अस्थि मे रहता था-उस युग के मनुष्य ( ऋषिलोग ) अन्न-जल को छोडकर तपस्या करते हुए सम्पूर्ण धातुओ के क्षयित हो जाने पर यदि अस्थिमात्र भी अवशिष्ट हो जाते थे तो अश्विनीकुमार ( देवताओ के चिकित्सक ) उन्हे भेपज-वल से पुनर्जीवित कर सकते थे। त्रेता युग मे प्राण का अवस्थान मास धातु मे हो गया थाजिससे उस युग के मुनि लोग तपस्या करते हुए सभी धातुओ को क्षयित कर लेते थे परन्तु अस्थि एव मांस धातु उनका शेष रह जाता था तो तत्कालीन अश्विनीकुमार उन्हे भेषज के योग से फिर जीवित कर लेते थे। द्वापर युग में प्राण का अवस्थान चर्म में हो गया था यदि उस युग के साधक तपस्वी लोग साधना करते हुए सभी धातुओ को क्षयित कर चुके हो, परन्तु उनके आस्थ, मास और चर्म धातु सुरक्षित हो, तो उनको भेषज आदि से जीवित किया जा सकता था। जब कलियुग आया तो प्राण का अवस्थान अन्न मे। हो गया यदि अन्न या भोजन मनुष्य का अधिक दिनो तक छुडा दिया जाय तो उसका पुनर्जीवनदान वैद्य के वश का नहीं रह जाता है। इस लिये कलियुग में अनशन या उपवास प्रशस्त नही माना गया है। __ ज्वर काल मे ज्वरित को भी' एकान्तत ' उपवास कराना ठीक नही है। "लवन स्वल्पभोजनम्" लघन का अर्थ लघु आहार करना चाहिये । हल्का एव पथ्य भोजन ज्वरित को अवश्य भोजनकाल मे देना चाहिये । फिर भी गुरु, अभिष्यदी भोजन का उपयोग नहीं करना चाहिये तथा अकाल मे भोजन नही देना चाहिये । इसी प्रयोजन से आचार्य सुश्रुत ने लिखा है :- : :
"ज्वर से पीडित मनुष्य को अरुचि होने पर भी हित र लघु भोजन देना चाहिये। क्योकि भोजन के समय में भूख प्रतीत होने पर भोजन न करने से रोगी क्षीण हो जाता है या मर जाता है।" ज्वर से पीडित या ज्वर से रहित मनुष्य को अपराह ( सायकाल ) मे लघु भोजन करना चाहिये, क्योकि उस समय श्लेष्मा