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( २० ) एक अभिनव विषय है, और उसका भी समावेश आधुनिक विषयों में करना वैज्ञानिकों का कर्तव्य है।
आयुर्वेद की विशेषताओं के सम्बन्ध मे अन्यान्य कई बाते उपस्थित की जा सकती है । भूमिका का कलेवर बहुत बृहद न हो अतएव सक्षेप में कुछ एक विशेपताओं का उल्लेख विशेषतः स्वस्थवृत्त से सम्बद्ध वैशिष्ट्यों का कयन किया गया है। साथ ही यह भी ध्यान में रखा गया है कि कथन अधिक व्यावहारिक हो और उसका क्रियात्मक ( Practical ) रूप दिया जा सके। ____ आयुर्वेद के दूसरे प्रयोजन चिकित्सा के सम्बन्ध मे भी विविध विगेपतामो का वर्णन स्वतन्त्र या विरतृत रूप में किया जा सकता है। परन्तु इस स्थान पर उसकी कुछ एक विशेषता का प्रतिपादन करते हुए लेख की इति की जा रही है।
सिद्धान्तचतुष्टय
( Four Fold theory ) आयुर्वेद मे की जाने वाली सम्पूर्ण क्रियाओं का सार या चिकित्सा का सारांश चार मौलिक सूत्रों मे और पारिभापिक शब्दों में आचार्य सुश्रुत ने दिया है-१. क्षीण हुए दोपों का बढ़ाना-यदि दोप या धातु क्षीण हो तो उनको वढावे । मनुष्य के शरीर में रस-रक्तादि प्रभृति धातुओं की कमी, खनिज द्रव्यों की कमी, पोपण के अभाव में पोषक द्रव्यों या जीवतिक्तियों की कमी ( Deficiency diseases due to lack of nutrition [ Vitamins, protien, carbohydrates, fats & minerals or hormonal imbalance ) तो उसे पूर्ति करना।
२. कुपित दोपों का प्रशमन करना-दोषों के कुपित होने से अथवा विषमयता के कारण लक्षणों का शमन विभिन्न लाक्षणिक तथा विशिष्ट औषधियों के प्रयोग से Sedation or Palliative treatment either symptomatic or by chemo therapy का प्रयत्न करना। इसमे संदेह नही कि आधुनिक चिकित्सा के संभार प्राचीनों की अपेक्षा उस वर्ण में अधिक उन्नत है।
३-बढ़े हुए दोपों का निर्हरण करना-बढ़े हुए विपों का रेचन ( Purging ) या प्रक्षालन ( Flushing of the system ) करना चाहिये। संशोधन का उपक्रम आयुर्वेद में सर्वोपरि है-जिसका प्रसंग पंचकमो में आ चुका है।
४-यदि टोप और धातु समान या स्वस्थ मात्रा में हो तो उनका पालन करे-इमी मिद्धात की रक्षा स्वस्थवृत्त नामक चिकित्सा विज्ञान के अंग से की जाती है । स्वास्थ्य-संरक्षण या स्वस्थ के स्वास्थ्य के पालन हेतु बनाये रखने