________________
१. मूल से उभरे सदा ही,
तर का मोटा तना । शाखा प्रशाखा के विभव को,
देख फिर मनहर छटा ।।
२. डालियों की एक शोभा,
है मृदुल पत्ते घने । पत्तियों को फूल-फल,
और फल फिर रसमय बने ।।
53
5720
३
जानना ।
मूल से ले रस तलक,
कम है यही तुम जानना । महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतन से कहा ।।
*