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१. सब कुछ मिलता है दुनिया में,
पर सार नहीं मिल पाता है । सार यदि मिल जाए तो,
फिर निकट समी कुछ आता है ।।
२. धर्म के चार ही हैं अंग,
जो दुर्लभ कहे जाते । बड़े ही पुण्य से प्राणी,
उन्हें जीवन में हैं पाते ।।
३. मनुष्य में भी मनुष्यता,
मुश्किल मे मिलती है । हृदय में श्रुत की फलिफा,
कहीं मुश्किल से खिलतो है ।।
४. श्रद्धा का जागना मन में,
बड़ा दुर्लभ फहा जाता । . बड़ी कठिनाई से प्राणी,
है संयम-पथ पर आता ।।
५. इन चार अंगों का मिलन,
जीवन में दुलंभ है महा । ★ महावीर ने यह सुपचन,
प्रिय शिष्य गौतम से रहा ।।