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१. जीवन के समस्त व्रतों का,
ब्रह्मचय सम्राट् है । हर व्रत है छोटो नदी,
ब्रह्म सागर विराट् है ।।
२. साधक को साधना का,
ब्रह्म ही प्राण है । आत्मा के साक्षात् का, .
ब्रह्म हो सोपान है ॥
३. कहीं शब्द, रूप और गन्ध है,
कहीं स्पर्श-रस के योग हैं। नश्वर सुख के बीज ये,
इन्द्रियों के भोग हैं ॥
४. हे ब्रह्म के साधक तुम्हें !
है काम गुण को छोड़ना । ★ महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ।।