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________________ के कुछ स्वर इधर सुनाई देते हैं । किन्तु वे इतने मन्द हैं कि दूर तक उनकी गति नहीं। इधर जितना भी प्रचार हो वह कम ही है । अंहिन्दी भाषी प्रान्तों में हिन्दी के बड़े-बड़े ग्रन्थ काम नहीं दे सकते । इधर आवश्यकता है लघुकाय संग्रहों की। छोटे-छोटे मनोरञ्जक मनोहर एवं शिक्षा-प्रद उपदेशों की। यह पुस्तक मेरे इसी विचार-मन्थन का एक नवनीत पिण्ड है। इस पुस्तक को और अधिक रोचक एवं आकर्षक बनाने के लिए इसका मैंने पद्यानुवाद किया है। प्रत्येक गाथा के भावार्थ का पद्यानुवाद कर दिया है ताकि पाठक के लिए यह अधिक से अधिक रुचिकर बने । यह रचना मेरे इसी संकल्प का सुफल है। अधिक से अधिक लोग मेरे इस प्रयास से लाभान्वित हो । यही मेरी हार्दिक अभिलाषा है-- मनोहर मुनि 'कुमुद हैदराबाद Ram Samirselim
SR No.010167
Book TitleBhagavana Mahavira ke Manohar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherLilam Pranlal Sanghvi Charitable Trust
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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