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४०. गाथा
जहा पोम्म जले जायं
नोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलितं कामेहि
तं वयं बूम माहणं॥
उत्त० अ० २५ गा० २७
अर्थ
जैसे कमल पानी में उत्पन्न होने पर भी कीचड़ से लिप्त नहीं होता। वैसे ही जो संसार में रहते हुए भी काम वासना में लिप्त नहीं होता वस्तुतः वही ब्राह्मण कहलाने के योग्य है ।