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३५. गाथा
नासीले न विसीले वि
न सिया अइलोलुए । अकोहणे सच्चरए
सिक्खा सीले त्ति वुच्चई ॥
उत्त० अ० ११ गा० ५
अर्य
जो शील सम्पन्न हो। जो पुनः पुनः दोष न करता हो । जो अलोलुपी हो। जो शान्त रहता हो और सत्य पारायण हो उसे ही शिक्षाशील कहते हैं।