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(६२ ) मनी" यह सब तो ठीक है। पर अब आगे के लिये क्या आयोजन है।
सेनापति प्रायोजन यही है कि आप सब यही विगजे रहे, विश्राम करे । मैं कुछ वीर योद्धानो को साथ लेकर विशाल पर्वत की विशालता देख पाता हूँ । सारे रास्तो से परिचित हो पाता हूँ।
भरत · चक्ररत्न को साथ रखना। सेनापति' "जैसी आपकी प्राज्ञा।
सेनापति अपने साथ चुने हुये वीर योद्धानो को साथ लेकर उस विशाल पर्वत की ओर बढने लगा। आगे-आगे चनरल, पीछे सेनापति और उसके पीछे चुने हुए वीर योद्धानो का समूह । ___ जय भरत । की गू ज के साथ मेना आगे बढ रही थी। विजया पर्वत पर रहने वाले पशु पक्षी भयभीत से हो रहे थे । भयकर और डरावने जगली पशुत्रो का सामना भी सेना को करना पडा । तभी .
"ठहरो " एक अदृश्य आवाज गूज उठी | सबने चौक कर इधर उधर देखा पर कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था । आवाज को एक भ्रम समझकर सेना आगे बढी ही थी कि
"ठहरो | रूक जानो। आगे मत बढो ।" की आवाज पुन सुनाई दी । अब सेनापति से न रहा गया । उसने भी ललकार कहा ____ "कौन है यह कायर | जो छिप छिपकर व्यर्थ ही गरज रहा है । यदि वीर है तो सामने क्यो नही पाता।"
"तुम मेरा आदेश मान लो। सामने आने से तुम्हे कोई लाभ नहीं मिल सकेगा । अदृश्य आवाज पुन सुनाई दी।
"क्या आदेश हे तुम्हारा ।" सेनापति ने पूछा । "यही कि जैसे भी पाये हो, वापिस लौट जानो।"
"वीरो का कदम जो आगे बढ गया । वह पीछे नही हटा करता।"