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(८०) किन्तु यह एक मत से नहीं भी कहा जा सकता। क्योकि जिस मानव ने प्रात्म कल्याण की भावना से स्व पर की पहचान कर ली हो, भेद विज्ञान द्वारा तप्पा की आग को बुझाडाला हो, सयम की राह जिसने अपनाली है, त्याग को जिसने अपना लिया हो और राग-द्वय का परित्याग जिसने कर दिया हो । वह फिर कभी भी ससार की भुलैया मे नही फसता।
वह कभी भी ससार के परिवतन मे नही भटकता । वह कभी भी जन्म-मरण के चक्कर नही खाता। और वही आत्मा परमात्मा बन जाती है।
जिसके हृदय में पवित्रता हो, जिसके हृदय मे प्यार हो, वात्सल्य हो, जिसके हदय मे साम्यता हो, जिमके हृदय मे शान्ति हो, जिसके हृदय मे निष्कपटता हो, जिसके हृदय मे विशुद्ध ज्ञान की ज्योति जल उठी हो-उसकी आत्मा का ससार का यह अस्थाई परिवर्तन कुछ भी नहीं कर सकता। वह ससार का विजेता होता है । वही आत्मा अमर होती है । वही आत्मा परमात्मा होती है ।"
भगवान आदिनाथ की निरक्षरी वाणी खिर रही थी और सभी उस वाणी मे खो रहे थे। भावो में लगे कीट कालिमा के जग धुल रहे थे । भावो में पवित्रता का मधुर रस घुल रहा था । भरत, माली, सुन्दरी, यादि सभी भगवान की वाणी मे एक-मेक हो रहे थे समा रहे थे। ____ पवित्रता के रंग का असर होने पर भरत को विशुद्ध सम्यक् दर्शन (श्रदान) की उत्पत्ति हुई।
ब्राह्मी और सुन्दरी ने सयम धारण कर आर्यिका पद प्राप्त लिया। आज उन्हें अपनी प्रतीक्षा को सफल बनाने का सुअवमर प्राप्त हो गया था।