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( 2014 )
हुआ विशाल भगवान आदिनाथ के विराजने का सिंहासन था । जो कमल के आकार का था । ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कमल से ऊपर घर भगवान आदिनाथ विराजे हुए हैं । उस कमल रूप सिंहासन के चारो ओर नीचे की ओर बारह सभा - विभाग थे । जिनमे सभी श्रोतागरण बैठे हुए है ।
आगे देखा कि बारह, सभाकक्षो मे क्रमश मुनिगण, कल्पवासी देविया, आर्यिकाएं व मनुष्य की स्त्रिया, भवनवासिनी देवियां, ज्योतिष्मिरणी देविया, भवनवासीदेव, व्यन्तरदेव' कल्पदासी देव, मनुष्य, और पशु बैठे हुए थे।
भरत अपने पूर्ण परिवार और प्रजा के साथ आया हुआ था । प्रथम ही तो भगवान की तीन प्रदक्षिरणा दी। पश्चात् अपने अपने योग्य कक्ष मे जाकर स्त्री पुरुष बैठ गए ?
भगवान मौन थे । पर स्वर्ग का ईन्द्र उनकी स्तुति कर रहा था जब इन्द्र भी स्तुति कर चुका तो भरत हाथ जोडकर मस्तक झुकाकर खडा हुआ, और विनिम्न वचनो से निवेदन किया कि प्रभो । हमे कुछ सतपय राह दिखाइए अपने उपदेशामृत से हम सभी प्राणियों की प्राकुलता मिटाइए । "
भगवान आदिनाथ के साथ जब कई राजा महाराज ने दीक्षा ली थी, तो उनमे श्रादिनाथ के पुत्र ऋषभसैन भी थे। वे दिगम्बर हो रहे और ग्राज उन्होंने भगवान के मुख्य गणधर का पद सुशोभित किया ।
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भगवान आदिनाथ के श्रीमुख से ॐ' शब्द की उद्घोषणा हुई | समस्त भूमण्डल, गगन मण्डल गूंज उठा। वातावरण शान्त हो उठा । मानव, दानव, देव, पशु पक्षी सभी सुन रहे थे । सभी ने जिधर से भी देखा भगवान् का दर्शन किया । अर्थात् चारो दिशा में भगवान का मुख दिखाई दे रहा था । तभी