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( ७५ ) "स्वामिन् । आपकी आयुधशाला मे आपके यश और कीर्ति से ओतप्रोत महान व अखण्ड शासक का रूपक 'चक्ररल' उत्पन्न हुआ है।"
"खूब | बहुत खूब ।"... • हा तो, सेविका तुम कौनसा - सुखद सन्देश लेकर ग्लाई हो?"
"प्रभो । आपके कुल का दीपक और वश-विस्तारक महा मनोज्ञ 'सुपुत्र' का जन्म हुआ है ।"
'वाह ! वाह ! . बहुत ही सुखद सन्देश है।'
राजदरबार जय-जय कारो से गूज उठा । एक साथ तीनतीन प्रानन्द दायक सुखद सन्देशो का सुनना बहुत ही प्रसन्नता की बात थी। तीनो को ही अमूल्य और जीवन सुखी बना देने वाला पारितोषिक दिया गया।
अयोध्या सज उठो । मधुर वाद्य बजने जगे। मगलगान गाए जाने लगे। द्वार-द्वार पर मंगल बन्दन-वार लाग रही थी। ध्वजाऐ, फहरा रही थी । और जयजय कारे की गूज सुनाई दे रही थी।
'महाराज आनन्द महोत्सव मनाया जाय' 'हा । हा अवश्य । किन्तु ।'
'किन्तु का क्या प्रश्न है प्रभो।' 'पहले किसका अर्थात् किस सन्देश का उत्सव मनाया जाय.. '
'पहले । ।' सब सभासद सोच में पड़ गए।
'तभी भरत सभ्राट ने सबको आदेश दिया-जायो । सभी सजधज के तैयार हो यो। मगल पूजा का सामान साथ मे लो। हम पहले भगवान आदिनाय को प्राप्त केवल्य ज्ञान का उत्सव मनाएंगे। हमे अभी भगवान से समक्ष पहुंचना है।' ___ पादेश सुनकर मभी प्रसन्न हुए। अयोध्या का प्रत्येक निवानी ध्यपने पवित्र और पूज्य भावो के साथ महाराज भरत के हापी के