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आहारदान की प्रारम्भिका कर जगत की ससृति मे यह मगलमय कार्य किया। यह दिन बैसाख शुक्ल तृतीया का मगल दिन था। तभी से इस दिन कर नाम 'अक्षय-तृतीया' प्रचलित हो उठा। ___ आहार कर लेने के पश्चात् भगवान आदिनाथ ने जगल की ओर विहार किया। आज उनके वैराग्य-समुद्र मे अनेक लहरे उठ रही थी । आत्मावरण धीरे-धीरे स्वत हटने लगा था। __शान्त और नीरव वातावरण के वन में एक वृक्ष के नीचे सुन्दर शिला पर आदिनाथ विराजे हुए थे। आज वे अत्यन्त शान्त, निराकुल थे । अपने ही आप मे लीन । इघर ये अपने आप मे, लीन हो रहे थे और उघर वैभाविक दुष्परगतियां मम मसा रही थी। क्योकि अव उनको आदिनाथ के पास रहने के लिए स्थान नहीं मिल पा रहा था ।
सबकी सव वैभाविक परणतिया अपने महाराज 'मोह' के पास गई और रोने लगी।
'हाय मालिक । अब हमारा क्या होगा? 'क्यो • क्या बात है?'
'अजो मालिक 'आजतक हम जिन प्रादिनाथ के पास पाराम से रह रही थी-वे ही हमे आश्रय नहीं दे रहे है।"
'क्यो ? ? ?'' मोह की भोहे तन उठी।
'उन्होने शान्ति, निराकुलता और मौन को अपनी रक्षा के लिए बुला लिया है।'
'तो क्या हुमा
'प्रजी पाह मालिक । भला जिम स्थान पर शान्ति, निगलता और मोन का प्राश्रय हो वहा हम कैसे टिक मरती है।